स्वामी दयानन्द सरस्वती-विश्व में आर्य समाज का प्रसार

The Influence of Swami Dayananda Saraswati and the Arya Samaj in the Promotion of Indian Culture

by Dr. Vishavjeet Singh*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 8, Issue No. 16, Oct 2014, Pages 1 - 6 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

क्या कारण है कि हमारा एक धर्म है। यह प्रश्न ऐसा है जो पिछले दिनों में ही पहली बार नहीं पूछा गया है फिर भी यह प्रश्न है जो उन कानों को भी चकृत कर देता है जो अनेक संग्रामों के तुमुल नाद से कठोर से हो गये हैं और वे संग्राम भी ऐसे जो सत्य की विजय के लिए लड़े गये थे। हमारा अस्तित्व ही किस प्रकार हुआ, हम अनुभूमि कैसे करते हैं, हम सिद्धांत कैसे बनाते हैं, हम अनुभूमि और सिद्धांत की तुलना कैसे करते हैं, उनको कैसे घटाते-बढ़ाते हैं और कैसे गुणित और विभाजित करते हैं। ये सब समस्याएं ऐसी हैं जिनसे न्यूनाधिक सभी परिचित है और प्रत्येक में प्लेटों, अरिस्टाटल, ह्यूमया कैन्ट के ग्रन्थों के पन्ने खोलने के साथ ही ये प्रश्न सोचे गये होंगे। इंद्रिय-ज्ञान, अनुभूमि, कल्पना और विवके सब कुछ जो हमारी चेतनता में विद्यमान हैं सबको अपने अस्तित्व के कारण और अधिकार की रक्षा आवश्यक है। फिर भी यह प्रश्न है कि हम विश्वास क्यों करते हैं। हमारा अस्तित्व ही क्यों है या हम क्यों कल्पना करते हैं कि हमें उनका ज्ञान है जिनकी अनुभूमि हम न तो इंद्रियों से कर सकते हैं और न विवके से ही प्रतिपादन कर सकते हैं। यह प्रश्न बहुत ही सरल जान पड़ता है किन्तु इस प्रश्न पर बड़े-बड़े दार्शनिकों ने भी प्रायः उतना ध्यान नहीं दिया है जितना देना चाहिए।[1] उन्नीसवीं शताब्दी यूं तो समाज सुधारकों और धर्म सुधारकों का युग है और इस युग में कई ऐसे महापुरूष हुए जिन्होंने समाज में व्याप्त अंधकार को दूर कर नयी किरण दिखाने की चेष्टा की। इनमें आर्य समाज के संस्थापक दयानन्द सरस्वती का नाम सर्वप्रमुख है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से भारतीय संस्कृति को एक श्रेष्ठ संस्कृति के रूप में पुरस्र्थापित किया। ये हिन्दु समाज के रक्षक थे। आर्य समाज आंदोलन भारत के बढ़ते पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था। उन्होंने “वेदों की ओर लौटने-ठंबा जव टमकं” का नारा बुलंद किया था।

KEYWORD

स्वामी दयानन्द सरस्वती, आर्य समाज, धर्म, संग्राम, अस्तित्व, अनुभूमि, सिद्धांत, विश्वास, द्धर्म सुधारकों, आंदोलन