सहकारिता आन्दोलन के सिद्धान्त व विवेचना

आधारशिला और प्रगति

by Shakil Ahmad*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 9, Issue No. 17, Jan 2015, Pages 1 - 6 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

सहकारी संगठन जिस अवधारणा या कार्य क्षेत्र को ग्रहण करते है, तो कार्यविधि, प्रक्रिया या उद्देश्य हेतु इन समितियों को कुछ सिद्धान्तों के अनुसार प्रगति करना होता है, ये सिद्धान्त ही सहकारिता की आधारशिला होते हैं। इन सिद्धान्तों का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि ये सिद्धान्त ही संस्था, संगठन, समिति में सहकारिता के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं।[1] काल्वर्ट का कथन था कि “सहकारिता स्वेच्छा पर आधारित संगठन है, जिसमें व्यक्ति समानता के आधार पर परस्पर सहयेाग एवं प्रयास कर अपनी आर्थिक उन्नति करता है। इस प्रकार सहकारिता द्वारा प्रत्येक वर्ग का (उच्च, मध्यम, निम्न) नैतिक चारित्रिक एवं आर्थिक रूप से उत्थान होता है, क्योंकि किसी भी प्रकार की छल व बेइमानी व्यक्ति के साथ-साथ संस्था को भी पतन की दिशा में ले जाती है। सहकारिता में समानता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों का अत्यधिक महत्व होता है। विभिन्न कार्यक्षेत्रों एवं विषय उद्देश्यों के अनुसार सहकारिता के सिद्धान्त भिन्न-भिन्न एवं परिवर्तनीय होते हैं। यद्यपि सहकारी सिद्धान्तों को विश्वव्यापी स्वीकृति प्राप्त है, परन्तु ये सिद्धान्त कठोर न होकर लचीले हैं, तथा इनमें परिवर्तन होते रहे हैं।

KEYWORD

सहकारिता आन्दोलन, सिद्धान्त, सहकारी संगठन, समितियों, संगठन