असहयोग आंदोलन के बाद बिहार में बढ़ती साम्प्रदायिकता का पुर्नअध्ययन
Impact of Non-Cooperation Movement on Communalism in Bihar
by Dr. Manish Kumar*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 11, Issue No. 21, Apr 2016, Pages 0 - 0 (0)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
स्वतंत्रता का सीधा सा अर्थ दासता - से मुक्ति है, किन्तु गहराई से विचार करने पर इसके कई गूढार्थ ते हैं, जो विविध आयामी और लोकोपकारी हैं। बिहार में स्वतंत्रता संघर्ष का लम्बा इतिहास है, जो वीर कुंवर सिंह से लेकर चम्पारण सत्याग्रह व सन् 1942 के करो या मरो तक चला। ___सन् 1911 ई. तक बंगाल, बिहार और उड़ीसा एक साथ थे, जिनका मुख्यालय कलकत्ता था। 1912 ई. में बिहार और उड़ीसा को बंगाल से अलग कर दिया गया। अप्रैल 1936 में उड़ीसा से बिहार भी अलग हो गया। सन् 1911 ई. में पटना (बांकीपुर) में कांग्रेस का 27वाँ अधिवेशन हुआ। रघुनाथ सिंह मधोलकर अध्यक्ष थे। सच्चिदानन्द सिन्हा महासचिव थे। प्रसिद्ध समाज सेवा मौ0 मजहरूल हक स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। 1915 में मजहरूल हक कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में भी शरीक हुए थे।
KEYWORD
असहयोग आंदोलन, बिहार, साम्प्रदायिकता, स्वतंत्रता, वीर कुंवर सिंह, चम्पारण सत्याग्रह, करो या मरो, बंगाल, उड़ीसा, पटना