वर्तमान परिदृश्य में कमजोर होती राजकोषीय संघवाद की जड़े
भारतीय संघवाद में राजकोषीय संघवाद की जड़े और संघात्मक व्यवस्था
by Dr. Karambir .*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 12, Issue No. 23, Oct 2016, Pages 405 - 407 (3)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
भारत राज्यों का एक संघ है। प्रत्येक राज्य के नागरिक स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार का चुनाव करते हैं। निर्वाचित सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उसके मतदाताओं के प्रति जवाबदेहिता है। संघात्मक व्यवस्था का तात्पर्य ऐसी शासन प्रणाली से है जहाँ पर संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन केंद्र और राज्य सरकार के मध्य किया जाता है एवं दोनों अपने अधिकार क्षेत्रों का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं। विदित है कि वस्तु एवं सेवा कर के माध्यम से प्राप्त कर का केवल एक छोटा हिस्सा ही राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है शेष प्रत्यक्ष कर के हिस्सों को परंपरागत तरीके से राज्यों के मध्य विभाजित किया जाता है। के संथानम् द्वारा भी वित्तीय मामलों में केंद्र का प्रभुत्व और राज्यों की केंद्र पर निर्भरता जैसी स्थिति को भारतीय संघवाद का असंतुलनकारी पक्ष माना गया है।
KEYWORD
राजकोषीय संघवाद, संघात्मक व्यवस्था, राज्य सरकार, छोटा हिस्सा, विभाजित