सातवें दशक के उपन्यासों में नारी-चेतना का मूल्यांकन
नारी-चेतना के उपन्यासों में परिवार और समस्याओं का मूल्यांकन
by Pratima .*, Dr. Praveen Kumar,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 12, Issue No. 2, Jan 2017, Pages 1561 - 1566 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
नारी के घर के और बाहर निकलकर बाहरी क्षेत्रों में पर्दापण करने की मान्यता ने उसके सामने घर व बाहर की समन्वित व्यक्तित्व की समस्या खडी़ कर दी। बाहरी क्षेत्रों में उसके जीवन में वह परिवेश इतना हावी हो गया कि वह उतरोत्तर अपने परिवार से विमुख होती गयी। अधिकांश उपन्यासों में नारी का चरित्र समाज की उन सभी रूढ़ियों से आदर्शों से आतंकित महसूस करती है। जहाँ वह अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक परिवार में रूतबा पाने की निरर्थक कोशिश कर अपने आप को पदपद पर आत्महत्या करती है। चाहे उनके व्यक्तित्व में कितनी बौद्धिकता हो फिर भी पारिवारिक दृष्टि से उनके व्यक्तित्व में एक घुटन व टूटन रहती है। एक स्थिति ऐसी आती है जब नारी सुलभ व्यक्तित्व उनके साथ सामंजस्य स्थापित करने में विवशता अनुभव करता है। इस स्थिति में नारी न तो घर की जिम्मेदारियों को वहन कर पाती है और न ही बाह्य क्षेत्रों में अपने अस्तित्व को कायम कर पाती है।
KEYWORD
नारी-चेतना, उपन्यास, समस्या, परिवार, व्यक्तित्व