समकालीन हिन्दी उपन्यास में साम्प्रदायिकता
भावनाएँ और आंतरिक जीवन का प्रतिबिम्ब: समकालीन हिन्दी उपन्यास
by Manoj Bala Chauhan*, Dr. Harish Chandra Pathak,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 13, Issue No. 2, Jul 2017, Pages 570 - 572 (3)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
साहित्य जीवन की संचित अनुभूतियो का प्रतिबिम्ब होता है कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, संस्मरण इत्यादि के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक भावनाओ को अभिव्यक्त करता है समाज में घटने वाली घटनाओ से रचनाकार आंदोलित होता है, और शब्दों के माध्यम से उसे अंकित कर वापस समाज को दे देता है सह्रदय पाठक इन भावनाओ के साथ जुड़ा हुआ महसूस करता है उपन्यास की खासियत यह है, कि इसमे मनुष्य के पुरे जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जा सकता है उपन्यास का कैनवास काफी बड़ा होता है, जिसमे जीवन की कई घटनाओ का चित्रांकन एक साथ हो सकता है उपन्यास की ओर मेरे आकृष्ट होने का कारण भी यही है
KEYWORD
समकालीन हिन्दी उपन्यास, साम्प्रदायिकता, साहित्य जीवन, अभिव्यक्ति, लेखा-जोखा, चित्रांकन