सूरकाव्य व हरिशंकर आदेश रचित सप्तशतियों में काव्य एवं प्रेम
भाव और प्रेम: सूरकाव्य और हरिशंकर आदेश के सप्तशतियों में
by Dimpal .*, Pushpa Rani,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 14, Issue No. 2, Jan 2018, Pages 31 - 34 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अपने विचारों को दूसरे तक पहुँचाना चाहता है और दूसरों के विचारों को जानने की जिज्ञासा रखता है। भावों-विचारों के आदान-प्रदान के क्रम ही एक-दूसरे के प्रति लगाव का भाव उत्पन्न करते हैं। यह लगाव ही परिवृद्धित होकर प्रेम की संज्ञा प्राप्त करता है। प्रेम मानव जीवन का मूलाधार है। प्रेम एक भावात्मक अनुभूति है जिसे शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर पाना संभव नहीं है। यह आंतरिक अनुभूति है। मानव का अस्तित्व प्रेमाश्रित है। प्रेम-भावना मानवीय हृदय तक सीमित न रहकर सृष्टि के काण-कण में व्याप्त है, जिसका अनुभव आत्मिक होता है।
KEYWORD
सूरकाव्य, हरिशंकर आदेश, सप्तशतियों, काव्य, प्रेम