अनुसन्धान एवं प्रक्रिया के रूप में शिक्षाः एक अध्ययन

शिक्षा: एक अनुशासन के रूप में समझना और कार्यान्वयन

by Dr. Seema Devi*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 14, Issue No. 2, Jan 2018, Pages 654 - 658 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

मनुष्य की इस संसार में जन्म के साथ ही वातावरण से अनुकूलन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस प्रक्रिया में मनुष्य की मूल प्रवृत्तियों तथा प्रकृति प्रदत्त क्षमताओं में विकास होता है। इस प्रक्रिया को ही शिक्षा कहते हैं। व्यत्पत्ति की दृष्टि से शिक्षा सीखने-सिखाने, मानव की आन्तरिक शक्तियों को सन्तुलित रूप से बाहर निकालने और बाहय शक्तियों का सुधार करने की सकारात्मक प्रक्रिया है। प्लेटो एवं अरविन्द जैसे दार्शनिक शिक्षा को उन्मूलन प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। सुविख्यात टी. रेमान्ट की दृष्टि में शिक्षा बालक के भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक परिवेश में विकास की प्रक्रिया है। भारतीय मनीषियों ने शिक्षा को विद्या का पर्याय मानते हुये कहा हैः- ‘सा विद्या या विमुक्तये’ विद्या वही है जो हमें मुक्ति के मार्ग पर ले जाये। इस प्रकार शिक्षा के अर्थ और आयाम विषयक विभिन्न धारणायें हैं। वस्तुतः शिक्षा ही विकास का साधन है। शिक्षा द्वारा न केवल व्यक्ति का वैयक्तिक विकास ही होता है, बल्कि सामाजिक विकास भी शिक्षा के ऊपर निर्भर करता इस प्रकार शिक्षा एक व्यापक बहुआयामी अवधारणा है। जहाँ एक ओर यह अनुभव-आधारित ज्ञान का अक्षय भण्डार है वहीं दूसरी ओर वह एक सकारात्मक प्रक्रिया, सामाजिक परिवर्तन का सशक्त साधन तथा सुविकसित सुव्यवस्थित शास्त्र है। इस इकाई में आप समाज शास्त्रीय दृष्टिकोण के आधार पर शिक्षा को एक प्रक्रिया के रूप में समझने का प्रयास करेंगे साथ ही साथ शिक्षा को एक अनुशासन के रूप में भी जान सकेंगे।

KEYWORD

अनुसंधान, प्रक्रिया, शिक्षा, विकास, विद्या