रविदास का काव्य और रस-सिद्धान्त: एक विवेचन

रविदास के काव्य में रस-सिद्धान्त का विश्लेषण

by Hargian .*, Dr. Gobind Dawedi,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 14, Issue No. 2, Jan 2018, Pages 715 - 718 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारतीय काव्यशास्त्रा की समृद्ध परम्परा संस्कृत से पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, अवहट्ठ से होती हुई, भारत की प्राचीन बोलियों के विशाल साहित्य को समृद्ध कर रही है। काव्यशास्त्रा का रस-सिद्धान्त संस्कृत आचार्यों के लक्षणों में उदाहरण से प्रमाणित होता है। इन आचार्यों की सूक्ष्म दृष्टि रस के अंग प्रत्यंग का गहनता से सर्वेक्षण करके लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। रसवादी आचार्यों ने अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुपम नवरसों में से किसी एक रस को प्रधान व अन्य रसों को गौण रूप से काव्य में प्रस्तुत किया है।

KEYWORD

रविदास, काव्य, रस-सिद्धान्त, भारतीय काव्यशास्त्रा, संस्कृत