पाणिनि की संस्कृत व्याकरण के विकास में भूमिका
Exploring the Role of Panini in the Development of Sanskrit Grammar
by Dr. Badlu Ram Shastri*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 14, Issue No. 2, Jan 2018, Pages 1972 - 1975 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
पाणिनी (700 ईसा पूर्व) संस्कृत भाषा का सबसे बड़ा व्याकरण आचार्य है। उनका जन्म उत्तर-पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। उनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरणिक रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी केवल व्याकरण का पाठ नहीं है। इस तरह से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक सोच, भोजन, भोजन, रहने आदि के विषयों का उल्लेख है। इस लेख में पाणिनी की संस्कृत व्याकरण के विकास में भूमिका का अध्ययन किया गया है।
KEYWORD
पाणिनि, संस्कृत व्याकरण, अष्टाध्यायी, तत्कालीन भारतीय समाज, भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा, राजनीतिक जीवन, दार्शनिक सोच