श्री शंकराचार्यकृत सौन्दर्यलहरी तथा आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली की दार्शनिक पृष्ठभूमि का एक तुलनात्मक अध्ययन
A Comparative Study of Shri Shankaracharya's Soundarya Lahiri and Acarya Amarnath Pandey's Soundaryavalli: A Philosophical Perspective
by Rajeev Kumar Gupta*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 211 - 214 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
वैदिक संहिताओं में भारतीयदर्शन के जो मूलतत्व प्रथमावस्था में प्राप्त होते हैं उनका स्वरूप धार्मिक तथा कर्म काण्ड बहुल हैं उसके पश्चात भारतीय दार्शनिक विचार धारा का दूसरा काल उपनिषदों में प्राप्त होता हैं संहिता कालखण्ड का स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ स्वरूप हैं । यह दूसरा अथार्त ओपनिषदिक काल पूर्णतया दार्शनिक है। ब्राहाण ग्रंथों में देवताओं की आराधना का जो स्वरूप था उससे आगे चलकर मानव मस्तिष्क को संतोष मिल पाना वाधित होने लगा। मनुष्य की धार्मिक चेतना की भूख को शान्त प्रदान करने के लिए औपनिषदिक चिन्तन की उदय हुआ। बलि प्रधान कर्मकाण्डों की परम्परा से मनुष्य ऊबने सा लगा। इसलिए उसका चिन्तन परमात्मा, जीव तथा संसार के विषय में अधिक क्रियाशील हो गया। निष्कर्ष यह निकला कि केवल नाना प्रकार की 'बलि' देने से देवताओं को संतुष्ट करके प्रसन्नता तथा आनन्द की प्राप्ति नहीं होगी। ज्ञान के द्रारा ही सांसारिक दुःखो से मुक्ति पाकर निरातिशय आनन्द की प्राप्ति की जा सकती हो। औपनिषदिक काल की दार्शनिक चिन्तन धारा का नाभिकीय विन्दु यही विचारधारा है । उपनिषदों ने अत्यन्त सरलता तथा सबलता के साथ सर्वोच्च चिन्तन पद्धति को प्रस्तुत किया है जो अन्यत्र आप्राप्य है।
KEYWORD
शंकराचार्य, सौन्दर्यलहरी, आचार्य अमरनाथ पांडेयरचित सौंदर्यवल्ली, दार्शनिक पृष्ठभूमि, वैदिक संहिताओं, भारतीयदर्शन, उपनिषदों, कर्म काण्ड, धार्मिक चेतना, उदय, बलि प्रधान कर्मकाण्ड, निरातिशय आनन्द, दार्शनिक चिन्तन, चिन्तन पद्धति