भारत में धार्मिक स्वतंत्रता व पंथनिरपेक्षता की अवधारणा
Interplay of Religion and State in India
by Dev Sharma Yajurvedi*, Prof. (Dr.) N. K. Thapak,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 382 - 386 (5)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
प्राचीन समय से ही भारत में सभी धर्मों का संरक्षण रहा है। यहां सभी धर्मांवलम्बियों के साथ समान व्यवहार किया जाता रहा है। भारत में इसका तात्पर्य केवल यह है कि राज्य धर्म के मामले में पूर्णतः तटस्थ है। राज्य प्रत्येक धर्म को समान रूप से संरक्षण प्रदान करता है, किन्तु किसी धर्म में हस्तक्षेप नहीं करता है। राज्य के पंथनिरपेक्ष स्वरूप में कोई रहस्यवाद नहीं है। पंथनिरपेक्षता न ईश्वर-विरोधी है और न ईश्वर-समर्थक। यह भक्त, संशयवादी और नास्तिक सभी को समान मानती है। इसने ईश्वर के सम्बन्ध में राज्य को कोई स्थान नहीं दिया है और यह बात सुनिश्चित की गयी है कि धर्म के आधार पर किसी के विरूद्ध विभेद नहीं किया जायेगा। पंथनिरपेक्ष राज्य में राज्य का सम्बन्धों मानव में आपसी सम्बन्धों से रहता है। मनुष्य और ईश्वर के बीच सम्बन्ध इसके दायरे से बाहर है यह व्यक्ति के अन्तःकरण से सम्बन्धित मामला है।
KEYWORD
धार्मिक स्वतंत्रता, पंथनिरपेक्षता, भारत, संरक्षण, राज्य