अनुसूचित जातियों के कल्याणकारी कार्यकर्मों का विश्लेषण
शिक्षा में अनुसूचित जातियों के लिए कल्याणकारी कार्यकर्मों का विश्लेषण
by Varsha .*, Dr. Rajbir Singh,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 604 - 606 (3)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
शिक्षा की जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया परिवार से प्रारम्भ होती है जहाँ एक बालक अपने जीवन का मुख्य भार्गव्यतीत करता है। माता बालक की सर्वोपरि शिक्षिका होती है वह बालक को अनौपचारिक शिक्षा अपने निर्देशनों आार परामर्श के द्वारा देती हैं बालक औपचारिक चीजों को अपने से बड़ों व सहपाठियों से सीखता है। इन अनौपचारिक शिक्षणों से बालक धीरे-धीरे औपचारिक शिक्षणों के लिये तायार होता है गाँधीजी के अनुसार ‘‘शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के उत्कृष्ट एवं सर्वांगीण विकास से है।’’ पेस्टालॉजी के अनुसार ‘‘शिक्षा मनुष्य की समस्त जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक, सामंजस्यपूर्ण (समरस) और प्रगतिशील विकास है। दुर्खीम (1956) के अनुसार ‘‘शिक्षा का अर्थ बालक के भौतिक, मानसिक और नैतिक पक्षों का आव्हन एवं विकास करना हैं’’ लुइस (1979) शिक्षा को समाज का अभिन्न अंर्गमानते है और वे यह भी मानते है कि शिक्षा के बिना सभी ज्ञान के भण्डार तथा चारित्रिक मापदण्ड नष्ट हो जायेंगे।
KEYWORD
अनुसूचित जातियों, कल्याणकारी कार्यकर्म, शिक्षा, बालक, अभिन्न अंग