धर्मवीर भारती और धर्मयुग
धर्मवीर भारती का धर्मयुग: शब्द, कागज और आत्मा की कहानी
by Shiksha Rani*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 706 - 709 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
धर्मवीर भारती और धर्मयुग का रिश्ता केवल शब्द और कागज का रिश्ता नहीं था। ये दोनों एक-दूसरे के इस हद तक पर्याय और पूरक बन गये थे कि एक धर्म (वीर) के बिना दूसरे धर्म (युग) की कल्पना भी असंभव हो गई थी। उनमें सच्चे अर्थों में शरीर और आत्मा का रिश्ता था। धर्मयुग शरीर था और धर्मवीर आत्मा। वैसे तो पत्रिका ‘अचल’ होती है और सम्पादक ‘चल’ किंतु धर्मयुग का यह सम्पादक जब टाइम्स बिल्डिंग से विदा लेकर बाहर निकला तो सभी को ऐसा लगा मानो धर्मयुग के शरीर से उसकी आत्मा निकाल ली गई हो। बिना आत्मा के शरीर कब तक प्राणवान रहता? धर्मवीर विहीन धर्मयुग ने भी कुछ वर्षों तक जल बिन मछली की तरह छटपटाते हुए अंततः अकाल मृत्यु का वरण कर लिया।[1]
KEYWORD
धर्मवीर भारती, धर्मयुग, शब्द, कागज, पत्रिका, सम्पादक, आत्मा, शरीर, विदा, अकाल मृत्यु