गाँधीजी के सानिध्य में वर्धा शिक्षा सम्मेलन का प्रारूप, क्रियान्वयन, विशेषता और उसका महत्व
वर्धा शिक्षा सम्मेलन: विकास के साधन
by Gaurav Suman*, Dr. Ramakant Sharma,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 1088 - 1093 (6)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
वर्धा शिक्षा योजना में सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास और ठोस चरित्र के निर्माण पर विशेष बल दिया था। लेकिन व्यक्तित्व के विकास के लिए कताई, बुनाई एवं हस्तकला के माध्यम से जीविकोपार्जन करना ही एक मात्र उपाय नहीं है, हस्तकला केन्द्रिय शिक्षा योजना में उत्पादन एवं जीविकोपार्जन पर विशेष बल दिया गया है। ठोस चरित्र निर्माण के लिए जो मूल बाते होती हैं जैसे बल्कि शिक्षा तथा कहने के माध्यम से चारित्रिक गुणों की स्थापना नाटकों के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान पर वर्धा शिक्षा योजना में कम बल दिया गया था। गाँधीजी हमेशा शिक्षा और कर्म को एक साथ जोड़कर देखना चाहते थे और समाज के साथ संस्कार की उन्नति पर भी जोर देते थे। वे ऐसा मानते थे कि चूँकि मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में एक उच्चतर प्राणी है और पशु से भिन्न कोटि का प्राणी है। अतः उसकी आवश्यकताएँ और जरूरतें केवल शारीरिक स्तर तक ही सीमित नहीं होती। अतः एक बौद्धिक और कार्यशील प्राणी होने के नाते उसे अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक विकास करने का पूर्ण अधिकार है और इसके लिए उसे सतत प्रयत्नशील रहने की जरूरत है।
KEYWORD
वर्धा शिक्षा सम्मेलन, व्यक्तित्व विकास, हस्तकला, चरित्र निर्माण, गाँधीजी