उत्तरवैदिक काल में आर्थिक क्षेत्र में विकास

The Socio-Economic Development in Ancient North Vedic Period

by Rahul Ranjan Singh*, Dr. Deben Kalita,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 1177 - 1181 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारत ने केवल भारतीयता का विकास नहीं किया, उसने चिर-मानव को जन्म दिया और मानवता का विकास करना ही उसकी सभ्यता का एकमात्र उद्देश्य हो गया। उसके लिए वसुधा कुटुंब थी। राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्रों में धर्म का प्रावधान होने से जीवन में एक आलौकिक विचारधारा का समावेश हुआ। प्राचीन हिंदुओं की राजनीति हिंसा, स्वार्थ पर अवलंबित न होकर प्रेम, सदाचार और परमार्थ पर आधारित थी। व्यक्ति का विकास ही समाज का विकास समझा जाता था। आर्थिक क्षेत्र में भी जीवन की कोमल व पवित्रधार्मिक भावनाएं क्रियाओं का निर्देशन करती थी यहाँ तक की संपूर्ण भारतीय सामाजिक संगठन मानव की मूल भावनाओं तथा जीवन के सिद्धांतों पर आधारित था। जीवन का उद्देश्य था, एक आदर्श था और उसकी प्राप्ति संसार की सभी भौतिक विभूतियों से उच्चतर समझी जाती थी।

KEYWORD

उत्तरवैदिक काल, भारतीयता, वसुधा कुटुंब, राजनीति, सामाजिक संगठन, आदर्श, मूल भावनाएं, जीवन के सिद्धांत, आधारित, भौतिक विभूतियाँ