मध्यकालीन भारत में नारी की स्थिति एवं वर्ण व्यवस्था

भूमि, आर्थिक स्थिति और सामाजिक व्यवस्था के संबंध में मध्यकालीन भारतीय समाज

by Pranaw Kumar*, Dr. Dewan Nazrul Quadir,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 1, Apr 2018, Pages 1182 - 1186 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

विविध स्तरों पर उपसामन्तों की वृद्धि के कारण भूमि से प्राप्त होने वाली आय अनेक छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो जाती थी जिससे दोनों छोरो पर स्थित कृषक और राजा की स्थिति दुर्बल हो गई और बिचौलियों के हाथो में आय चली जाने के कारण उन्हें क्षति उठानी पड़ती थी। कृषकों को भूमि करके अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के कर देने पड़ते थे।जिस प्रकार से राज्य की राजनीति धरातलीय स्तर पर विस्तृत हो रही थी और गण-संघ राजनीतिक व्यवस्था का विनाश हो रहा था उसी प्रकार आर्थिक स्तर पर धरातलीय रूप में ग्रामीण कृषक वस्तियों का विस्तार हो रहा था यद्यपि कि नगरीय अर्थव्यवस्था या सिक्कों की अर्थ व्यवस्था के उत्कर्ष की प्रवृत्ति भी मिलती है। वर्ण जाति पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का भी धरातलीय विस्तार असीमित था यद्यपि सामाजिक ढांचे में कुछ परिवर्तन भी लौकिक आधार पर हो रहे थे। भूमिदानों एवं उपसामंतीकरण के फलस्वरूप राजनीतिक सत्ता का जिस प्रकार श्रेणी-विन्यास हुआ उसका प्रतिविश्व सामाजिक-आर्थिक जीवन में भी देखा जा सकता है।

KEYWORD

मध्यकालीन भारत, नारी, स्थिति, वर्ण व्यवस्था, आय, कृषक, राजा, बिचौलियों, आर्थिक स्तर, ग्रामीण कृषक