शिवदान सिंह चौहान और पाश्चात्य साहित्यालोचन

An analysis of the influence of Western literary criticism on Shivdan Singh Chauhan

by Rajesh Kumar*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 3, May 2018, Pages 147 - 149 (3)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

पाश्चात्य काव्यशास्त्र से तात्पर्य है- यूरोपीय देश का काव्यशास्त्र। यूरोपीय देश के साथ-साथ अमेरिका और आस्ट्रेलिया का भी गणना पाश्चात्य देशों में की जाती है। शिवदान सिंह चैहान ने पाश्चात्य काव्यशास्त्र को सन् 2001 ई. से लगभग ढाई हजार पुरानी मानते हैं। उन्होंने स्पष्ट लिखा है- ‘‘पाश्चात्य काव्यशास्त्र की परंपरा भी लगभग ढाई हजार पुरानी है। आरंभ में उसका विकास यूनान में हुआ, फिर रोम में। प्लेटो, अरस्तु, लौंजाइनस, होरेस, क्विंटीलियन इस प्राचीन परम्परा के निर्माता हैं।

KEYWORD

शिवदान सिंह चौहान, पाश्चात्य साहित्यालोचन, पाश्चात्य काव्यशास्त्र, यूरोपीय देश, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, पुरानी, विकास, यूनान, रोम