प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरु-शिष्य परंपरा

अत्यधिक सम्मानित स्थान: प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरु-शिष्य परंपरा

by Vashundhara .*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 3, May 2018, Pages 694 - 699 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

वेद शब्द का अर्थ ज्ञान होता है। वैदिक कालीन शिक्षा से तात्पर्य उस ज्ञान से है जो वेदो में सुरक्षित है तथा जो उस काल में प्रयोग किया जाता था। भारत की आधारभूत संस्कृति का ज्ञान इन्हीं प्राचीन धर्म-ग्रन्थों में सुरक्षित है। वैदिक कालीन शिक्षा न तो पुस्तकीय ज्ञान में विश्वास रखती थी और न ही जीवकोपार्जन का साधन थी, यह तो पूर्ण रूप से नैतिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान का सोपान थी। उस समय की शिक्षा का अर्थ था कि व्यक्ति को इस प्रकार से आत्म प्रकाशित किया जाय कि उसका सर्वांगीण विकास हो सके। श्रवण मनन तथा निदिध्यासन आदि शिक्षा प्राप्त करने के साधन थे। वेद जो लिखित रूप से संकलित नहीं किये गये केवल कण्ठस्थ ही कराये जाते थे, श्रुति कहलाये। इस प्रकार वैदिक साहित्य में शिक्षा शब्द का प्रयोग विद्या ज्ञान तथा विनय आदि अर्थों में किया जाता था। भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यधिक सम्मानित स्थान प्राप्त है। भारतीय इतिहास में गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रूप में होने के साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है.

KEYWORD

वेद, शिक्षा पद्धति, गुरु-शिष्य परंपरा, भारतीय संस्कृति, साहित्य