अभ्रक उद्योग का विकास
भारत में अभ्रक उद्योग: इतिहास, विकास और निर्यात
by Dr. Ranjan Kumar*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 5, Jul 2018, Pages 653 - 661 (9)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
प्राचीन काल में भारत के अभ्रक का उपयोग चिकित्सा एवं आभूषण-सज्जा में तथा मध्यकालीन भारत में अकबर के शासनकाल (1556-1605 ई॰) में मध्य-पूर्व के मुस्लिम राष्ट्रों को मुहर्रम के अवसर पर तजिया निर्माण हेतु अभ्रक का निर्यात किया जाता था। लेकिन इन के बावजूद यह कहना कठिन है कि झारखंड में अभ्रक उद्योग प्राचीन काल एवं मध्यकाल में सुनियोजित रूप से संगठित था। झारखंड में अभ्रक का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने अभ्रक का अत्यधिक दोहन किया, लेकिन अभ्रक उद्योग के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। सन् 1947 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अखिल भारतीय काँग्रेस समिति ने एक आर्थिक कार्यक्रम समिति गठित किया गया। जिसके अंर्तगत सार्वजनिक क्षेत्र के लिए प्रतिरक्षा, प्रमुख उद्योग और जनसेवाएँ तय किया गया।इस क्रम में सरकार का ध्यान अभ्रक उद्योग के विकास पर भी गया। इसके बावजूद, 1964 इस्वी के पहले तक अभ्रक उद्योग कुछेक बड़े निर्यातकों तक हीं सीमित था। जून, 1974 में स्थापित ‘मिटकों‘ (माइका ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड) ने अभ्रक उद्योग के विकास एवं शोध की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किया। आधुनिक काल में झारखंड में अभ्रक उद्योग भारत के विदेशी व्यापार पर निर्भर है। क्योंकि हमारे देश में अभ्रक की जो खपत है, वह काफी कम है। अतः अभ्रक के अंतराष्ट्रीय मांग पर ही अभ्रक उद्योग का विकास निर्भर है। सन् 1930 ईस्वी के पहले लघु पैमाने पर उतार-चढ़ाव के साथ झारखंड (तत्कालीन बिहार) में अभ्रक के निर्यात में वृद्धि होती गई।प्रथम विश्वयुद्ध के आरंभ के समय बाजार के भविष्य की अनिश्चितता के कारण इसकी स्थिति बिगड़ती चली गई। अतः सरकार द्वारा एक योजना लाई गई जिसके तहत वह अभ्रक का क्रय कर उसे अपने अधिग्रहण में ले ली। सिसे यह लाभ हुआ कि अभ्रक निर्यात में अचानक वृद्धि हो गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले और बाद में अभ्रक की अंतर्राष्ट्रीय मांग में वृद्धि होने से इसके उत्पादन में स्वभाविक रूप से वृद्धि हुई। इस समय विश्व-बाजार में अभ्रक उद्योग का लगातार विस्तार होता गया। साथ हीं, अभ्रक की कीमत में लगातार वृद्धि हुआ। जिसके परिणाम स्वरुप अभ्रक की मांग में वृद्धि के कारण अभ्रक के उत्पादन एवं उसके मूल्यों में तीव्र वृद्धि हुई। अतः आवष्यक है कि अभ्रक उद्योग को बचाने एवं अभ्रक खदाने के बंद होने को रोकने के लिए प्रभावकारी कदम उठाया जाए।
KEYWORD
अभ्रक उद्योग, विकास, झारखंड, भारत, निर्यात