भारत में सती प्रथा की ऐतिहासिक पृष्टभूमि

by Anubha Singh*, Dr. Rajiv Nayan,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 6, Aug 2018, Pages 565 - 570 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

प्राचीन भारत में पति की मृत्यु के बाद विधवा स्त्री द्वारा पति का अनुगमन करने के उद्देश्य से स्वदाह करने की प्रथा की प्राचीनता के विषय में इतिहासकारों में मतैक्य नहीं है। हिन्दू धर्म के चार वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद, इन चारों वेद में से किसी भी वेद में स्त्री को सती करने जैसी व्याख्या शामिल नहीं है। शाश्त्रसम्मत कथा के सूक्ष्म अवलोकन कर हम पाते हैं की शिवं कि पत्नी “देवि सति” और पांडू कि पत्नी “माद्री”, दोनों घटनाओं में से किसी को भी धार्मिक रंग नहीं दिया जा सकता। सती अनुसुया, सती अहिल्या और सती सीता में से भी किसी को न उनके पति के साथ गया था और ना ही उनकी इच्छा के खिलाफ़ उन्हें सती हो जाने का आदेश दिया गया था। कुछ इतिहासकार, “जौहर प्रथा” को, जिसमें राजपरिवार कि महिलाये खुद क़ो आक्रमणकारी मुग़लों के द्वारा बलात्कार किये जाने या रखैल बना लिये जाने की तुलना में आत्म्हत्या को श्रेष्ठक मानती थीं, को सती प्रथा का मूल मानते हैं। वहीं कुछ का मत है कि सती को शायद भारत में सीक्थी आक्रमणकारियों द्वारा भारत लाया गया था। अन्य इतिहासकार भारतीय परंपराओं को ही “सतीप्रथा” की उत्त्पत्ति का मूल मानते हैं। परंतु उपरोक्त कोई भी एक मत सभी इतिहासकारों द्वारा स्विकार्य नहीं है, अतः यह तर्कसंगत हो जाता है की हम भारत में सती प्रथा की एतिहसिक्ता का अवलोकन अभिलेखीय प्रमाणों के आधर पर करें।

KEYWORD

सती प्रथा, पति, विधवा स्त्री, भारत, धर्म