भारत में स्त्री विमर्श और स्त्री संघर्ष
भारतीय स्त्री-संघर्ष: संघर्ष की उपेक्षा से भारतीय परिप्रेक्ष्य में विमर्श
by Munna Lal Nandeshwar*, Dr. Dinesh Kumar Verma,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 6, Aug 2018, Pages 575 - 577 (3)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
पश्चिम के स्त्री आंदोलनों और स्त्री विमर्श से तुलना करते हुए कई बार हमारे योग्य विद्वान भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्त्री संघर्ष की उपेक्षा कर जाते हैं। हिंदी के विमर्शात्मक लेखन पर भी इसी तरह का एक खास नजरिया चस्पां कर दिया गया है और उसका मूल्यांकन चंद लेखिकाओं के आधार पर करके एक सामान्य निष्कर्ष निकाल दिया जाता है। ऐसे में भारत के स्त्री-संघर्ष के इतिहास पर पुनर्विचार करना जरुरी है। स्त्री विमर्श एक वैश्विक विचारधारा है लेकिन विष्वभर की स्त्रियों का संघर्ष उनके अपने समाज सापेक्ष है। इस सन्दर्भ में स्त्री संघर्ष और स्त्री विमर्श दोनों को थोड़ा अलग कर देखने की जरूरत है हाँलाकि दोनों अन्योन्याश्रित हैं। इसलिए किसी एक देश में किसी खास परिस्थिति में चलने वाला स्त्री संघर्ष एकमात्र सार्वभौमिक सत्य नहीं हो सकता है, प्रेरणास्रोत हो सकता है। हर देश का अपना अलग-अलग बुनियादी सामाजिक ढांचा है। ऐसे आन्दोलन वैश्विक विचारधारा के विकास में सहायक हो सकते हैं लेकिन यह जरुरी नहीं है कि हर आन्दोलन इस वैश्विक विचारधारा की सैद्धांतिकी को आधार बना कर चले।
KEYWORD
स्त्री विमर्श, स्त्री संघर्ष, पश्चिम के स्त्री आंदोलनों, भारतीय परिप्रेक्ष्य, हिंदी के विमर्शात्मक लेखन, भारत के स्त्री-संघर्ष, विश्वभर की स्त्रियों, सार्वभौमिक सत्य, वैश्विक विचारधारा, आन्दोलन