भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और प्रताप नारायण मिश्र का हिन्दी साहित्य में पदार्पण
by Renu Mittal*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 7, Sep 2018, Pages 427 - 433 (7)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों की नियुक्तियाँ इंग्लैंड स्थित कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर द्वारा की जाती थी इनकी पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर की जाती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी में ज्यादातर कर्मचारी कम आयु (17 या 18 वर्ष) नगरों में निवास करने वाले निम्न वर्ग से संबंध रखते थे या जेल से निकाले हुए होते थे। इनमें अधिकांश कर्मचारी अशिक्षित एवं अर्द्धशिक्षित होते थे, जिनको सामान्य व्यापार की सामान्य शिक्षा देकर भेजा जाता था। इसलिए उनके लिए कंपनी का हित गौण और अपना सर्वोपरि हो जाता था। जिसके कारण वे अनैतिक ढंग से धन कमाने में लग जाते थे। इस संबंध में ए. डी. कीथ ने लिखा है कि ‘कार्नवालिस की सेना बहुत बड़ी थी- कुल मिलाकर 70,000 हजार सैनिक थे, किन्तु बहुत घटिया किस्म की थी, विशेषकर कंपनी सेना के 6,000 यूरोपियन जो लंदन की गलियों के निम्न लोग और जेलों से निकाले हुए होते थे तथा जिनके अधिकारी नष्ट-भ्रष्ट युवक या धन के पीछे भागने वाले धन लोलुप व्यक्ति थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के चारित्रिक पतन का सबसे बड़ा कारण उनके वेतन का पर्याप्त नहीं होना भी था। इस कारण से अधिकांश व्यापारियों ने अपना निजी व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। इस संबंध में गुरू निहाल सिंह ने लिखा है कि “यह निजी व्यवसाय अपने लिए अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा से किया जाता था। क्योंकि उनके वेतन हास्यास्पद रूप से कम होते थे। पांच साल से काम करने वाले मुंशी को 10 पौंड प्रतिवर्ष मिलते थे। परिषद के सदस्यों को 80 पौंड प्रति वर्ष तथा गवर्नर को केवल 300 पौंड प्रतिवर्ष मिलते थे।
KEYWORD
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, हिन्दी साहित्य, ईस्ट इंडिया कंपनी, वेतन