गाँधी जी की तिरहुत यात्रा का ऐतिहासिक महत्व

The Historical Significance of Gandhi Ji's Tirhut Journey and the Establishment of a School in Gandhua Village

by Dr. Vardraj .*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 9, Oct 2018, Pages 105 - 113 (9)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

बताते हैं कि 1918 में महात्मा गांधी ने तिरहुत के कमिश्नर एलएफ मोर्शिद से मिलकर अपने चंपारण यात्रा का कार्यक्रम बनाया था। तब चंपारण में नीलहे किसानों पर अत्याचार का दौर चरम पर था। चंपारण यात्रा पूरी होने के बाद महात्मा गांधी को सारण के हरपुर जान गांव में एक सभा को संबोधित करना था। ऐसे में उनके आगमन की भनक गंधुआ गांव के श्यामसुन्दर जी को लग गई। गांधी जी के साथ सारण जिले के अमनौर थाना के अपहर गांव के वकील गोरखनाथ तथा सारण जिला परिषद के चेयरमैन मौलाना मजहरूल हक भी लारी में सवार होकर हरपुर जान गांव आ रहे थे। इसी बीच श्यामसुन्दर लाल मजहरूल हक से मिले और उनसे बात कर गांधी जी को गंधुआ लाने के लिए तैयार किये। गांव तक आने के लिए सही रास्ता तक नहीं था। ऐसे में गांव के एक किलोमीटर दूर गांधी जी को लारी से उतारकर बैलगाड़ी पर बैठाया गया। इस गांव के बुजुर्ग यादों की कड़ियों को जोड़ते हुए बताते हैं कि गांधी जी ने कहा था कि हिंसा मत कीजिए व सच्ची बात बोलिए। वे बताते हैं उस समय गांव में विद्यालय नहीं था। जब गांधी जी को इसका पता चला तो उन्होंने गांव में एक विद्यालय की स्थापना खुद अपने ही हाथों से की थी। 1919 में मिट्टी की भीत पर विद्यालय बनकर तैयार हुआ। तब पांच-छह कोस से बच्चे यहां पढ़ने आते थे। लेकिन अब गांधी जी द्वारा स्थापित यह विद्यालय किसी भी नजर से साधन संपन्न नहीं दिखता। शिक्षकों की कमी से लेकर तमाम समस्याओं से जूझ रहे महात्मा गांधी के सपनों का गांव गंधुआ आज भी उपेक्षित हैं।

KEYWORD

गाँधी जी, तिरहुत यात्रा, चंपारण, गांधुआ गांव, स्थापित विद्यालय