हिन्दी भाषा का अतीत एवं वर्तमान तथा इक्कीसवीं शताब्दी में हिन्दी भाषा का वैश्विक स्वरूप

भाषा एवं संस्कृति के परम्परागत संबंध

by Shiksha Rani*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 9, Oct 2018, Pages 631 - 634 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारतवर्ष की प्रमुख भाषा हिन्दी का उद्भव और विकास संस्कृत से माना जाता है, परन्तु संस्कृत से हिन्दी तक की विकास यात्रा में कई तरह के परिवर्तन आते रहे। कभी वैदिक संस्कृत, कभी पालि, कभी प्राकृत और कभी अपभ्रंश के तीन रूपों (सौरसेनी, मागधी एवं महाराष्ट्री) में भोलानाथ तिवारी सौरसेनी से हिन्दी की जन्मतिथि सातवीं, नवीं व दसवीं शताब्दी मानते हैं, जबकि रामचन्द्र शुक्ल ग्यारहवीं।[1] ‘हिन्दी’ शब्द पहले स्थानवाची था, बाद में भाषावादी बन गया क्योंकि संस्कृत का ‘स’ फारसी में ‘ह’ होने के कारण सिन्धु, सिंध और सिंधी फारसी में हिंदू, हिंद और हिंदी हो गया। वास्तव में फारसी के निवासियों द्वारा हिंदी नाम प्रदृत हुआ है।

KEYWORD

हिन्दी भाषा, अतीत, वर्तमान, इक्कीसवीं शताब्दी, वैश्विक स्वरूप