भारतीय राजनीति का धर्म के प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन
The Influence of Religion on Indian Politics
by Neelam Devi*,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 15, Issue No. 11, Nov 2018, Pages 641 - 645 (5)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
भारत में साम्प्रदायिक राजनीति का प्रारम्भ ब्रिटिश काल में हो गया था, क्योंकि अंग्रेज भारत में ‘फूट डालो राज करो’ की अपनी नीति के तहत हिन्दू एवं मुसलमानों को लड़ाते रहे और यहां शासन करते रहे। उनकी इस कुटनीति की परिणति अगस्त, 1947 में भारत के विभाजन में हुई। स्वतंत्र भारत के लिए संविधान सभा द्वारा एक संविधान का निर्माण किया गया जिसके द्वारा भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा ‘धर्म-निरपेक्ष’ शब्द संविधान की प्रतावना में जोड़कर यह एकदम स्पष्ट कर दिया गया कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। लेकिन इस सब के बावजूद भी भारत में सामप्रदायिकता जारी रही। साम्प्रदायिकता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है देश को स्वतंत्रता मिलने के लिए 40 वर्षो के अंदर देश में लगभग 5000 साम्प्रदायिक घटनाएँ घटीं। 1961 में साम्प्रदायिक तनाव की दृष्टि से देश में 61 जिले गड़बड़ी वाले माने गए थे, जबकि 1987 में इनकी संख्या बढकर 98 हो गयी। दिसम्बर, 1992 में अयोध्या में हुई घटना ने तो सम्पूर्ण देश को अपनी चपेट में लिया था। 2002 में गुजरात में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में हजार से भी अधिक लोगों की हत्या एवं सितम्बर, 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर जिले में हुई साम्प्रदायिक हिंसा में 63 लोगों का मारा जाना सिद्ध करता है कि साम्प्रदायिकता हमार सार्वजनिक जीवन का एक अंग बन गयी प्रतीत होती है। पिछले कुछ वर्षों से तो यह भारतीय राजनीति पर पूरी तरह छा गयी है। आज अधिकतर राजनीतिक दल साम्प्रदायिक राजनीति का खेल खेल रहे हैं, किन्तु प्रत्येक राजनीतिक दल स्वयं को ‘धर्म-निरपेक्ष’ और अपने प्रतिद्वंद्वी दलों को साम्प्रदायिक अथवा ‘छद्म धर्म-निरपेक्ष’ बताता है।
KEYWORD
भारतीय राजनीति, धर्म, साम्प्रदायिक राजनीति, ब्रिटिश काल, हिन्दू, मुसलमान, संविधान सभा, संविधान संशोधन अधिनियम, साम्प्रदायिकता, तनाव, अयोध्या हत्याकांड, गुजरात हिंसा, मुजफ्फर नगर, राजनीतिक दल