वैचारिक तौर पर स्वस्थ्य शिक्षा पद्धति ही स्वस्थ्य समाज, देश और विश्व का निर्माण कर सकती है

The Role of Health Education in Building Healthy Societies

by Dr. Kamla .*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 15, Issue No. 12, Dec 2018, Pages 143 - 146 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

मौजूदा समय की शिक्षा व्यवस्था केवल बेरोजगारों की भीड़ तैयार कर रही है, इसमें बेशक शाब्दिक ज्ञान बहुत है लेकिन ये भी सच है कि ज्ञान अल्पकालिक होकर रह गया है, एक दौड़ हो रही है आगे निकलने की, शिक्षा कागजी न होकर व्यवहारिक होनी चाहिए साथ ही उसमें संस्कृति के गहरे उददेश्य भी नजर आने चाहिए। जब तक देश में अपनी शिक्षा प्रणाली नहीं होगी, जब तक मैकाले का मौन अनुसरण बंद नहीं होगा तब तक शिक्षा केवल कागजी होकर रह जाएगी वो गहरे ज्ञान में परिवर्तित नहीं हो सकती। ज्ञान यदि है तो अल्पकालिक नहीं हो सकता, वो दीर्घकालिक होता है, लेकिन कागजी ज्ञान दीर्घकालिक नहीं हो सकता। बेहतर है कि देश की शिक्षा में संस्कृति, गुरुकुल शिक्षा के साथ व्यवहारिक ज्ञान भी प्रमुखता से समाहित हो। देश की शिक्षा व्यवस्था यदि गहरी नहीं होगी, वो ज्ञान का पर्याय नहीं होगी तो देश में सांस्कृतिक और मौलिक ह्रास नहीं रोका जा सकता। हम दुनिया समझने निकले हैं, लेकिन देश की संस्कृति, देश का अतीत, देश का साहित्य हम नहीं समझ पाए हैं, उससे दूर रहे हो रहे हैं क्योंकि मैकाले की शिक्षा व्यवस्था की मंशा ही ये थी कि हम अपने आप अपनी संस्कृति और अपने देश के अतीत से दूर होते जाएं। शिक्षा व्यवस्था में सुधार आवश्यक है और ये जितनी जल्द होगा सुधार का शंखनाद भी उतनी ही शीघ्र होगा। वैचारिक तौर पर स्वस्थ्य शिक्षा पद्धति ही स्वस्थ्य समाज, देश और विश्व का निर्माण कर सकती है।

KEYWORD

स्वस्थ्य शिक्षा पद्धति, शिक्षा व्यवस्था, देश, संस्कृति, ज्ञान