नारी अस्मिता का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सन्दर्भ में वर्णन

भारतीय समाज में नारी अस्मिता का संक्षिप्त वर्णन

by Savita .*, Dr. Govind Dwivedi,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 16, Issue No. 1, Jan 2019, Pages 2582 - 2586 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारतीय साज की रूपरेखा न केवल प्रधान रही बल्कि वहाँ स्त्री को मानवीय मानुषी समझने से ही इंकार कर दिया गया उसकी अनेक ऐसी परिभाषाएँ निश्चित कर दी गई जिसमें कभी तो वह देवी बनी, कभी दानवी कभी पत्नी, कभी माँ तो कभी पुत्री, अर्थात् उसके समग्र व्यक्तित्व को पुरुष निर्भर संबंधों में बांट दिया गया। स्त्री सामाजिक प्राणी होते हुए भी गृहविहीना ऐसी जीव है जिसका घर तो क्या रातो-रात नाम भी बदल दिया जाता है वरन् एक नये वातावरण, परिवार संबंधी के बीच बचपन से युवा हुआ उसका तन न केवल अजनबी पति को सौंप दिया जाता है। अस्मिता का परिप्रेक्ष्य सामाजिक ही होता है। समाज से स्वयं के रिश्ते ही पहचान के बाद मनुष्य निजी तौर पर ‘स्व’ की खोज में उन्मुख होता है। सृष्टि के सभी तत्वों, तथ्यों तथा जीवन मर्म का पूरी तरह उपयोग और उपभोग होता मानव जीवन की सार्थकता है। हालांकि सृष्टि के समस्त प्राणियों को जीने का अधिकार है।

KEYWORD

नारी अस्मिता, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, संबंध, स्त्री