मृदुला गर्ग की कहानियों में सामाजिक चेतना
DOI:
https://doi.org/10.29070/5tv88b88Keywords:
मृदुला गर्ग, सामाजिक चेतना, कहानियाAbstract
भारतीय साहित्य में सामाजिक चेतना को व्यापक फलक पर पहुंचाने के लिए हिन्दी साहित्य का विशेष योगदान रहा हैं। आदिकाल से लेकर अब तक के समय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए। साहित्य के माध्यम से ही लेखक पाठक के मन को जागृत कर उसमें समाज के प्रति संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान करता है। साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक चेतना के उस रूप का उदय हुआ, जो उसने भोगा था, पर दूसरे उससे अनभिज्ञ थे। युगों के साथ-साथ सामाजिकता के तेवर भी बदले। मृदुला गर्ग का उपन्यास आज की चुनौतियों का सामना करती है, इनके पात्र परंपरागत अंधविश्वास रूढ़ि राजनीतिक आर्थिक सामाजिक आदि प्रक्रियाओं के प्रति प्रश्नचिन्ह लगाते है। इनके कथानकों के केन्द्र में सामाजिक चेतना हैं। मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यासों में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया हैं। साहित्यकार का संबंध जितना सामाजिकता से होता है, उतना ही साहित्य से विशेष सामाजिक चेतना का विश्व व्यापक फलक पर नाता जोडता हैं।
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