मृदुला गर्ग की कहानियों में सामाजिक चेतना

Authors

  • सुनीता शोधार्थी, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर, राजस्थान
  • डॉ. निरुपमा हर्षवर्धन शोध निर्देषक, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर, राजस्थान

DOI:

https://doi.org/10.29070/5tv88b88

Keywords:

मृदुला गर्ग, सामाजिक चेतना, कहानिया

Abstract

भारतीय साहित्य में सामाजिक चेतना को व्यापक फलक पर पहुंचाने के लिए हिन्दी साहित्य का विशेष योगदान रहा हैं। आदिकाल से लेकर अब तक के समय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए। साहित्य के माध्यम से ही लेखक पाठक के मन को जागृत कर उसमें समाज के प्रति संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान करता है। साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक चेतना के उस रूप का उदय हुआ, जो उसने भोगा था, पर दूसरे उससे अनभिज्ञ थे। युगों के साथ-साथ सामाजिकता के तेवर भी बदले। मृदुला गर्ग का उपन्यास आज की चुनौतियों का सामना करती है, इनके पात्र परंपरागत अंधविश्वास रूढ़ि राजनीतिक आर्थिक सामाजिक आदि प्रक्रियाओं के प्रति प्रश्नचिन्ह लगाते है। इनके कथानकों के केन्द्र में सामाजिक चेतना हैं। मृदुला गर्ग ने अपने उपन्यासों में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया हैं। साहित्यकार का संबंध जितना सामाजिकता से होता है, उतना ही साहित्य से विशेष सामाजिक चेतना का विश्व व्यापक फलक पर नाता जोडता हैं।

References

मृदुला गर्ग, श्कठगुलाबश् उपन्यास पृष्ठ सं.-141

मृदुला गर्ग वंशजश् उपन्यास पृष्ठ सं.- 118-119

वही पृष्ठ सं. -73

हिन्दी साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि - स्त्री विमर्श, पृष्ठ सं. - 140

मृदुला गर्ग, चितकोबरा, उपन्यास, पृष्ठ सं.-91, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, तीसरा संस्करण 2017

इलिमेंट्स ऑफ सोशियोलॉजी - एम. जिंसबर्ग, पृष्ठ सं.-9

साहित्य और जीवन, मैक्सिम गोर्कि पृष्ठ सं.- 91

हिन्दू लॉ - एस. एस. एस. सरकार, पृष्ठ सं.-243,

डॉ रोहिणी अग्रवाल, साहित्य का स्त्री स्वर, पृष्ठ सं. -9

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Published

2024-09-03

How to Cite

[1]
“मृदुला गर्ग की कहानियों में सामाजिक चेतना”, JASRAE, vol. 21, no. 2, pp. 33–34, Sep. 2024, doi: 10.29070/5tv88b88.

How to Cite

[1]
“मृदुला गर्ग की कहानियों में सामाजिक चेतना”, JASRAE, vol. 21, no. 2, pp. 33–34, Sep. 2024, doi: 10.29070/5tv88b88.