बिहार में दलित महिला सशक्तिकरण और समाज का बदलता दृष्टिकोण

Authors

  • Priya Ranjan रिसर्च स्कॉलर, समाजशास्त्र, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर

DOI:

https://doi.org/10.29070/vhxf4d25

Keywords:

दलित, महिला, सशक्तिकरण दृष्टिकोण अंधविश्वास, चेतना, जागृति

Abstract

मानव सभ्यता के इतिहास में स्वतंत्रता व सशक्तिकरण का प्रश्न सदा से ही उलझनपूर्ण रहा है। दलित महिला को लेकर जितनी भी व्यावस्थाएं बनी उनमें उसे प्रायः दोयम दर्जे का स्थान ही दिया गया है। इसके लिए हमारी सामाजिक व्यावस्था और पुरुष प्रधन समाज की सोच पूर्णतः उत्तरदायी है। सामाजिक असमानता निरक्षरता, अंधविश्वास, दहेज, जाति प्रथा, लिंग-भेद आदि मुद्दों के विरुद्ध आवाज उठती रही है। परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान में समानता को समकक्ष रखकर उनके विकास के लिए समान अवसरों की गारंटी दी अनेक प्रावधानों द्वारा दलित महिला को सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गई। जिससे दलित महिला के अंदर नई चेतना और जागृति का विकास हुआ। और वे समाज के मुख्यधारा में अपने को स्थापित किया। यथा शिक्षा, राजनीति और रोजगार में उनकी सहभागिता गुणात्मक रूप से वृद्धि हुई है। जिससे सामाजिक सोच व संरचना में बदलाव आया है।

References

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Published

2012-04-02

How to Cite

[1]
“बिहार में दलित महिला सशक्तिकरण और समाज का बदलता दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 3, no. 6, pp. 1–5, Apr. 2012, doi: 10.29070/vhxf4d25.

How to Cite

[1]
“बिहार में दलित महिला सशक्तिकरण और समाज का बदलता दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 3, no. 6, pp. 1–5, Apr. 2012, doi: 10.29070/vhxf4d25.