जनजातियों पर वैश्वीकरण के प्रभाव का समाजशास्त्रीय अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.29070/ywvbsm94Keywords:
वैश्वीकरण, जनजातीय समुदाय, सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक प्रभाव, आर्थिक परिवर्तनAbstract
यह शोध पत्र भारत की जनजातियों पर वैश्वीकरण के सामाजिक प्रभावों का समाजशास्त्रीय अध्ययन प्रस्तुत करता है। वैश्वीकरण ने जहां आर्थिक विकास और आधुनिक सुविधाओं तक पहुँच को सुलभ बनाया है, वहीं इसके परिणामस्वरूप जनजातीय पहचान और पारंपरिक प्रथाओं के संरक्षण में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इस अध्ययन में गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण के संयोजन से जनजातीय आजीविका, प्रवासन पैटर्न, शिक्षा, और स्वास्थ्य देखभाल में आए परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है। निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि वैश्वीकरण के लाभों और जनजातीय धरोहर के ह्रास के बीच एक जटिल संबंध है, जिससे यह आवश्यक हो जाता है कि विकास की ऐसी नीतियाँ बनाई जाएँ जो इन समुदायों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित रखते हुए उन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल कर सकें। इस शोध पत्र में ऐसे नीति सुझाव दिए गए हैं जो जनजातियों को वैश्वीकरण के लाभों का हिस्सा बनाते हुए उनके सांस्कृतिक ताने-बाने को संरक्षित रखने में सहायक हो सकते हैं।
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