महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का विश्लेषण: सैद्धांतिक शोध पत्र का खाका

Authors

  • सरला माथनकर रिसर्च स्कॉलर, डिपार्टमेन्ट ऑफ़ इकोनॉमिक्स, मध्यांचल प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, भोपाल, म.प्र.

DOI:

https://doi.org/10.29070/wjmert58

Keywords:

महिला सशक्तिकरण, स्वरोजगार समूह, वित्तीय समावेशन, आर्थिक विकास, सामुदायिक विकास, सामाजिक न्याय, निर्णय लेने की प्रक्रिया, डिजिटल साक्षरता

Abstract

यह शोध पत्र महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण  के प्रभाव और चुनौतियों का विश्लेषण करता है। स्वरोजगार समूहों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, आय के स्रोत बढ़ाने, और सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अध्ययन सैद्धांतिक ढांचे पर आधारित है और स्वरोजगार समूहों के संगठनात्मक ढांचे, कार्यप्रणाली, और उनके आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को समझने पर केंद्रित है। शोध में यह स्पष्ट किया गया है कि महिला स्वरोजगार समूह न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं, बल्कि महिलाओं को नेतृत्व और सामुदायिक विकास में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान करते हैं। अध्ययन यह भी दर्शाता है कि इन समूहों के माध्यम से महिलाएं शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार के साथ-साथ अपने परिवार और समुदाय की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं। यह शोध पत्र महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए नीतिगत सुझाव भी प्रस्तुत करता है, जैसे कि प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम, डिजिटल साक्षरता का प्रचार-प्रसार, और सरकारी व वित्तीय संस्थानों से सहयोग। यह निष्कर्ष निकाला गया है कि महिला स्वरोजगार समूहों को मजबूत करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने और प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। यह अध्ययन सैद्धांतिक दृष्टिकोण से यह दर्शाता है कि स्वरोजगार समूह केवल आर्थिक विकास का साधन नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक बदलाव और सामुदायिक सशक्तिकरण के लिए भी एक प्रभावशाली उपकरण हैं। इस शोध से संबंधित भविष्य के अनुसंधान के लिए संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई है, जो महिला स्वरोजगार समूहों की दीर्घकालिक स्थिरता और उनके प्रभाव को समझने में सहायक हो सकते हैं।

References

विश्व बैंक. (2017). विकास के लिए सशक्तिकरण। वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट।

नाबार्ड. (2020). स्वरोजगार समूह और वित्तीय समावेशन। नाबार्ड प्रकाशन।

सेन, अ. (1999). स्वतंत्रता के रूप में विकास। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस।

कुमार, ए., और मोहन, आर. (2018). भारत में स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण। भारतीय सामाजिक विज्ञान पत्रिका, 45(2), 112-125।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी). (2019). सामुदायिक विकास और महिला सशक्तिकरण। यूएनडीपी प्रकाशन।

शर्मा, एस. (2021). ग्रामीण भारत में सामाजिक न्याय और महिलाएँ। ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय पत्रिका, 12(3), 54-62।

अग्रवाल, आर. (2020). महिला स्वरोजगार समूहों का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव। भारतीय आर्थिक और सामाजिक अध्ययन पत्रिका, 38(4), 98-105।

वर्मा, पी., और गुप्ता, एम. (2019). स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं का वित्तीय समावेशन। महिला अध्ययन और सशक्तिकरण पत्रिका, 15(1), 33-47।

चौधरी, एस., और सिंह, के. (2020). स्वरोजगार समूहों का ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक विकास में योगदान। ग्रामीण आर्थिक विकास पत्रिका, 18(2), 75-89।

जोशी, पी. (2019). महिला सशक्तिकरण और स्वरोजगार समूह: सामाजिक दृष्टिकोण। भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक अध्ययन पत्रिका, 23(3), 101-115।

गुप्ता, आर., और यादव, एन. (2021). स्वरोजगार समूह और महिला उद्यमशीलता: एक तुलनात्मक अध्ययन। विकास अध्ययन पत्रिका, 14(4), 55-68।

मिश्रा, ए. (2018). महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में सामुदायिक वित्त की भूमिका। महिला और विकास पत्रिका, 12(1), 42-50।

कश्यप, डी. (2020). स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के नेतृत्व का विकास। सामुदायिक सशक्तिकरण पत्रिका, 10(2), 30-45।

Downloads

Published

2024-10-01

How to Cite

[1]
“महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का विश्लेषण: सैद्धांतिक शोध पत्र का खाका”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 105–111, Oct. 2024, doi: 10.29070/wjmert58.

How to Cite

[1]
“महिला स्वरोजगार समूहों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का विश्लेषण: सैद्धांतिक शोध पत्र का खाका”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 105–111, Oct. 2024, doi: 10.29070/wjmert58.