वैश्विक ज्ञान-धारा में पिछड़ता भारत

Authors

  • डॉ. चरणदास सहायक प्राध्यापक (हिन्दी), राजकीय महिला महाविद्यालय, शहजादपुर (अम्बाला), हरियाणा

DOI:

https://doi.org/10.29070/ne1a6c25

Keywords:

शिक्षा, ज्ञान, गौरव, मिथक, पिछड़ापन, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी

Abstract

निश्चित रूप से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आज विश्व तीव्र गति से प्रगतिमान है| प्रतिदिन नये-नये आविष्कार हो रहे हैं| वैश्वीकरण के दौर में विश्व के एक कोने में होने वाले आविष्कार की चमक केवल उस कोने तक सीमित ना रहते हुए सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर जाती है| सबसे पिछड़े देश भी अगर धन-धान्य सम्पन्न हैं तो नव-आविष्कृत उपकरणों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेते हैं| भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है जो विश्व की प्रगतिशील ज्ञान-धारा में नगण्य योगदान देकर आधुनिकता की सभी सुविधाओं को भोग रहा है और अपने प्राचीन गौरव का बखान कर अपना आत्म-सम्मान बचाने की असफल कोशिश कर रहा है|

References

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Published

2024-10-01

How to Cite

[1]
“वैश्विक ज्ञान-धारा में पिछड़ता भारत”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 116–119, Oct. 2024, doi: 10.29070/ne1a6c25.

How to Cite

[1]
“वैश्विक ज्ञान-धारा में पिछड़ता भारत”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 116–119, Oct. 2024, doi: 10.29070/ne1a6c25.