वैश्विक ज्ञान-धारा में पिछड़ता भारत
DOI:
https://doi.org/10.29070/ne1a6c25Keywords:
शिक्षा, ज्ञान, गौरव, मिथक, पिछड़ापन, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकीAbstract
निश्चित रूप से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आज विश्व तीव्र गति से प्रगतिमान है| प्रतिदिन नये-नये आविष्कार हो रहे हैं| वैश्वीकरण के दौर में विश्व के एक कोने में होने वाले आविष्कार की चमक केवल उस कोने तक सीमित ना रहते हुए सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर जाती है| सबसे पिछड़े देश भी अगर धन-धान्य सम्पन्न हैं तो नव-आविष्कृत उपकरणों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेते हैं| भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है जो विश्व की प्रगतिशील ज्ञान-धारा में नगण्य योगदान देकर आधुनिकता की सभी सुविधाओं को भोग रहा है और अपने प्राचीन गौरव का बखान कर अपना आत्म-सम्मान बचाने की असफल कोशिश कर रहा है|
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