समलैंगिकता एवं धारा 377: एक विश्लेषण

Authors

  • सुरभि गोस्वामी शोधार्थी, वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान
  • डॉ. रूचि सहायक प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान

DOI:

https://doi.org/10.29070/zzsxe369

Keywords:

समलैंगिकता, धारा 377, LGBTQIA+, संवैधानिक अधिकार, न्यायिक निर्णय, सामाजिक दृष्टिकोण

Abstract

यह शोध-पत्र भारतीय समाज में समलैंगिकता को लेकर व्याप्त सामाजिक दृष्टिकोण और धारा 377 के कानूनी प्रभावों का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। औपनिवेशिक काल में लागू की गई इस धारा ने वयस्कों के बीच सहमति से स्थापित समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में डालकर LGBTQIA+ समुदाय को लंबे समय तक संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा। न्यायपालिका द्वारा समय-समय पर दिए गए निर्णयों, विशेष रूप से 2018 के ऐतिहासिक नवतेज जोहर वाद, ने इस धारा को असंवैधानिक ठहराकर समलैंगिक व्यक्तियों की गरिमा, निजता और समानता के अधिकारों की पुनः स्थापना की। यह शोध सामाजिक, विधिक और सांस्कृतिक स्तरों पर धारा 377 के प्रभावों को समझने का प्रयास करता है तथा समलैंगिकता को एक मानवीय यथार्थ और संवैधानिक विषय के रूप में स्थापित करता है।

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Published

2025-04-01

How to Cite

[1]
“समलैंगिकता एवं धारा 377: एक विश्लेषण”, JASRAE, vol. 22, no. 3, pp. 259–264, Apr. 2025, doi: 10.29070/zzsxe369.

How to Cite

[1]
“समलैंगिकता एवं धारा 377: एक विश्लेषण”, JASRAE, vol. 22, no. 3, pp. 259–264, Apr. 2025, doi: 10.29070/zzsxe369.