पुरातन में निहित नवीनता: भारतीय ज्ञान परंपरा का सामाजिक और शैक्षिक योगदान
DOI:
https://doi.org/10.29070/adcd6897Keywords:
भारतीय ज्ञान परंपरा , समाजशास्त्रीय मूल्यांकन , सामाजिक उत्तरदायित्व , उपभोक्तावाद, वैश्वीकरण , परंपराएँ पर्यावरण चेतना , वैश्विक प्रभाव , समकालीन शिक्षाAbstract
भारतीय ज्ञान वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, लोककथाओं और पारंपरिक प्रथाओं से समृद्ध है, जो शासन, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक संरचना और आध्यात्मिक ज्ञान सहित विभिन्न विषयों को समाहित करती है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि इनमें विज्ञान, गणित, चिकित्सा, खगोलशास्त्र और दर्शन के गहरे बीज भी निहित हैं। महाभारत, रामायण, मनुस्मृति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, चरक और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों ने राजनीति, समाजशास्त्र, अर्थव्यवस्था और चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय योगदान दिया। इन ग्रंथों में पुरातन में ही नवीनता निहित है। भारत की सामाजिक संरचना — वर्ण, आश्रम, जाति, परिवार, ग्राम व्यवस्था, धर्म और कर्तव्य जैसे सिद्धांत — सभी भारतीय ज्ञान प्रणालियों में निहित थे और समाज के संतुलन एवं संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान युग में जब मानव सभ्यता तकनीकी प्रगति, उपभोक्तावाद और वैश्वीकरण की ओर तीव्र गति से अग्रसर है, तब भारतीय ज्ञान परंपरा कई प्रकार की चुनौतियों से जूझ रही है। जिसका समाधान शिक्षा में समावेश,अनुवाद और डिजिटलीकरण,स्थानीय भाषाओं का प्रोत्साहन,आध्यात्मिक पुनर्जागरण सांस्कृतिक चेतना का विकास किया जा सकता है।
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