बुंदेली लोकोक्ति एवं मुहावरों में श्री गौरीशंकर उपाध्याय का योगदान

Authors

  • सुश्री कल्पना सिंह शोधार्थी, पी.के. विश्वविद्यालय, शिवपुरी (म.प्र.)
  • डॉ. बृजलता सिंह पर्यवेक्षक, कला विभाग, पी.के. विश्वविद्यालय, शिवपुरी (म.प्र.)

DOI:

https://doi.org/10.29070/q3z6wz43

Keywords:

मुहावरे, लोकोक्ति, संस्कृति

Abstract

भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं की समृद्धि का प्रदर्शन प्रायः उनकी लोकोक्तियों और मुहावरों के माध्यम से होता है, जो जनमानस की सामूहिक बुद्धिमत्ता, हास्यबोध और दार्शनिक दृष्टिकोण को व्यक्त करते हैं। बुंदेली, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बोली जाती है, एक जीवंत बोली है। यह शोधपत्र श्री गौरीशंकर उपाध्याय के उल्लेखनीय योगदान का विश्लेषण करता है, जिन्होंने बुंदेली मुहावरों और लोकोक्तियों को सहेजने, बढ़ावा देने और रचनात्मक रूप से साहित्य में प्रयोग करने का कार्य किया है। यह अध्ययन उनके प्रयासों का भाषाई, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दृष्टिकोण से मूल्यांकन करता है और यह रेखांकित करता है कि यह दस्तावेजीकरण भारत की सामाजिक-भाषाई विविधता को संरक्षित करने और वर्तमान पीढ़ियों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने में कैसे सहायक है।

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Published

2024-10-01

How to Cite

[1]
“बुंदेली लोकोक्ति एवं मुहावरों में श्री गौरीशंकर उपाध्याय का योगदान”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 527–530, Oct. 2024, doi: 10.29070/q3z6wz43.

How to Cite

[1]
“बुंदेली लोकोक्ति एवं मुहावरों में श्री गौरीशंकर उपाध्याय का योगदान”, JASRAE, vol. 21, no. 7, pp. 527–530, Oct. 2024, doi: 10.29070/q3z6wz43.