गिजुभाई के जीवन-दर्शन का अध्ययन: एक समीक्षात्मक दृष्टिकोण

Authors

  • प्रभा चौरसिया शोधार्थी, श्री कृष्णा विश्वविद्यालय, छतरपुर, म.प्र.
  • डॉ. संजय कुमार एसोसिएट प्रोफेसर, श्री कृष्णा यूनिवर्सिटी, छतरपुर म.प्र.

DOI:

https://doi.org/10.29070/jgm6p436

Keywords:

गिजुभाई बधेका, जीवन-दर्शन, बालकेंद्रित शिक्षा, नैतिक शिक्षा, रचनात्मकता, मोंटेसरी पद्धति, गांधीवादी शिक्षा, भारतीय शिक्षाशास्त्र

Abstract

गिजुभाई बधेका भारतीय शिक्षा प्रणाली में बालकेंद्रित दृष्टिकोण और रचनात्मक शिक्षण के अग्रदूत माने जाते हैं। उनका जीवन-दर्शन केवल एक शिक्षण पद्धति तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक समग्र और मानवीय दृष्टिकोण था, जो शिक्षा को जीवन का अभिन्न अंग मानता था। उन्होंने शिक्षा को केवल औपचारिक ज्ञान प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि एक नैतिक, सामाजिक और रचनात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा। उनके जीवन-दर्शन में बालकों की स्वतंत्रता, स्वाभाविक जिज्ञासा, रचनात्मकता, आत्म-अनुशासन और नैतिक मूल्यों को प्रमुखता दी गई। गिजुभाई का मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालकों के स्वाभाविक विकास में सहायक हो, न कि उनके ऊपर थोपी जाए। उन्होंने विद्यालयों को ऐसी जगह बनाने पर बल दिया जहाँ बालक स्वाभाविक रूप से सीखने के लिए प्रेरित हो, और शिक्षण गतिविधियाँ उनकी रुचि, आवश्यकता और समझ के अनुसार तैयार की जाएँ। उनके विचारों पर गांधीवादी सिद्धांतों, मारिया मोंटेसरी की पद्धति, और भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं का स्पष्ट प्रभाव था। गिजुभाई ने यह सिद्ध किया कि कहानियों, गीतों, नाटकों और खेलों के माध्यम से शिक्षा को बालकों के लिए सहज, सजीव और रोचक बनाया जा सकता है। वर्तमान समय में जब शिक्षा प्रणाली परिणाम आधारित, प्रतियोगितामूलक और परीक्षा-केंद्रित होती जा रही है, तब गिजुभाई का जीवन-दर्शन पुनः प्रासंगिक हो गया है। यह समीक्षात्मक शोधपत्र गिजुभाई के जीवन-दर्शन के विविध पक्षों की पड़ताल करता है और यह दर्शाता है कि उनके विचार आज भी शिक्षा को मानवतावादी, नैतिक और रचनात्मक दिशा देने की क्षमता रखते हैं।

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Published

2023-07-01

How to Cite

[1]
“गिजुभाई के जीवन-दर्शन का अध्ययन: एक समीक्षात्मक दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 20, no. 3, pp. 635–641, Jul. 2023, doi: 10.29070/jgm6p436.

How to Cite

[1]
“गिजुभाई के जीवन-दर्शन का अध्ययन: एक समीक्षात्मक दृष्टिकोण”, JASRAE, vol. 20, no. 3, pp. 635–641, Jul. 2023, doi: 10.29070/jgm6p436.