भारतीय ज्ञान परंपरा और राम काव्य धारा

Authors

  • सीताराम उइके शोधार्थी, हिंदी विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा (म.प्र.)
  • डॉ. कृष्ण बिहारी रॉय सहायक प्राध्यापक, हिंदी, शास. कन्या महाविद्यालय, सीधी (म.प्र.)

DOI:

https://doi.org/10.29070/mpgec467

Keywords:

परंपरा, प्राचीन, शास्त्र, मानवता, संस्कृति, समाज, समन्वय, आर्थिक, त्याग।

Abstract

भारतीय ज्ञान परंपरा अर्थात् जो ज्ञान वेदों, उपनिषदों शास्त्रीय ग्रंथ, पांडुलिपियों या मौखिक संचार के रूप में हजारों वर्षों से चला आ रहा है। उसके अंतर्गत जीवन निर्वाह करने हेतु व्यवहारिक ज्ञान जैसे शिकार या कृषि, पारंपरिक चिकित्सा आकाशीय ज्ञान (खगोल विज्ञान) शिल्प, कौशल जलवायु और अन्य क्षेत्रों की पारंपरिक प्रौद्योगिकियों के बारे में प्राप्त किये जाने वाला ज्ञान शामिल है। मौखिक परंपरा के अंतर्गत ज्ञान कहानियों, किवंदतियों लोक कथाओं अनुष्ठानों गीतों, पौराणिक कथाओं दृश्य कला और वास्तुकला के रूप में प्रचलित हैं।

भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में राम भक्ति काव्य के स्त्रोत आदि काव्य 'रामायण' में मिलते हैं। राम काव्य परंपरा में वाल्मीकि को आदि कवि तथा रामायण को आदि काव्य माना गया है। वाल्मीकि से पूर्व राम भक्ति स्तुति के प्रमाण लिखित रूप में प्राप्त नहीं होते किन्तु जनश्रुति व मिथकों से राम और सीता के चरित्र का आभास जरूर मिलता है। राम कथा ऐतिहासिक है या पौराणिक कल्पित इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। भारतीय संस्कृति में राम के चरित्र को भाव नायक के रूप में माना गया है। इस भाव नायक कथा में प्रत्येक युग में कुछ न कुछ जुडता चला आया है।

References

प्रमोद भार्गव आलेख- दुनिया के साथ साझा होगी भारतीय ज्ञान परंपरा, प्रवक्ता. कॉम।

श्री रामदास गौड़ा, आलेख भारतीय परंपरा और साहित्य का महत्व, अखण्ड ज्योति, वर्ष 1958 वर्जन-2

डॉ. धीरेन्द्र वर्मा (सं.), हिंदी साहित्य कोश भाग-1 पृष्ठ-543

डॉ. अशोक तिवारी, हिंदी प्रश्न पत्र 1 प्रतियोगिता साहित्य सीरीज, पृष्ठ 128

रामविलास शर्मा, परंपरा का मूल्यांकन, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली पृष्ठ 94

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Published

2025-07-01

How to Cite

[1]
“भारतीय ज्ञान परंपरा और राम काव्य धारा”, JASRAE, vol. 22, no. 4, pp. 41–43, Jul. 2025, doi: 10.29070/mpgec467.

How to Cite

[1]
“भारतीय ज्ञान परंपरा और राम काव्य धारा”, JASRAE, vol. 22, no. 4, pp. 41–43, Jul. 2025, doi: 10.29070/mpgec467.