बाल्यावस्था में नैतिकता का अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.29070/ze466e16Keywords:
नैतिक मूल्य, आदर्श, प्रारंभिक बाल्यावस्था, पालन पोषण, प्रोत्साहनAbstract
नैतिक व्यवहार में किसी सार्वभौमिक मापदंड की कल्पना नहीं की जा सकती है। समाज की मान्यताओं और अपेक्षाओं के अनुरूप संपन्न किया गया आचरण ही नैतिक व्यवहार हैं। विकास क्रम में बच्चा अपने परिवेश में नैतिक-अनैतिक बातें सीखता है। प्रारंभ से ही शिक्षाविदों का ध्यान बालकों के नैतिक विकास की ओर आकृष्ट हुआ है। बालक में नैतिक मूल्यों के विकास के कारण समझ में प्रखरता एवं विश्वास में दृढ़ता उत्पन्न होती है। आदर्श के प्रति बालक जागरूक हो जाता है। नैतिक व्यवहार अर्जित किया जाता है। यह संचेतना परिवार में विकसित होती है। आर्थिक दृष्टिकोण से भारतीय समाज तीन भागों में विभक्त है - उच्च आर्थिक स्थिति, मध्यम आर्थिक स्थिति तथा निम्न आर्थिक स्थिति। गरीबी और अमीरी दोनों ही परिस्थितियों में पृथक रीति से पले एवं बढ़े बच्चों का नैतिक विकास एक समान नहीं हो सकता है। उच्च एवं निम्न आय समूहों के बालकों के नैतिक विकास एवं माता-पिता के प्रोत्साहन प्राप्तांको के तुलनात्मक विवेचन से यह प्रमाणित होता है कि निम्न समूह में उच्च समूह की अपेक्षा उच्च नैतिक विकास पर प्रोत्साहन का उच्च प्रभाव पाया जाता है।
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