ग्रामीण महिला स्वावलंबन में स्वराज, स्वदेशी व खादी की भूमिका: महात्मा गांधी के विचारों के विशेष संदर्भ में एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
DOI:
https://doi.org/10.29070/12g6g655Keywords:
महिला सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता, सत्याग्रह, राष्ट्रनिर्माता, आर्थिक आत्मनिर्भरता, राजनीतिक आंदोलनAbstract
महात्मा गांधी ने भारतीय महिलाओं के जागरण और स्वावलंबन की दिशा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं को न सिर्फ राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रिया में उनके सक्रिय भागीदारी हेतु प्रेरित किया बल्कि उनके अधिकारों, कर्तव्यों और आत्मविश्वास को भी सशक्त बनाया। महात्मा गांधी का यह मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता व स्वावलम्बन महिला सशक्तिकरण का मूल आधार है। इसी उद्देश्य से उन्होंने महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को स्वदेशी, स्वराज और खादी से जोड़ा तथा उन्हें चरखा-कताई और बुनाई के माध्यम से आर्थिक आत्मनिर्भरता की राह दिखाई।
खादी आंदोलन और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में महिलाओं की भागीदारी ने स्वदेशी आंदोलन को व्यापक जनाधार प्रदान किया। इस प्रकार, महिलाओं की पारंपरिक घरेलू भूमिका को राष्ट्रीय आंदोलन से एकीकृत कर उन्होंने स्वावलंबन और स्वराज की ठोस नींव रखी।
प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य ऐतिहासिक एवं वर्णनात्मक पद्धति के माध्यम से द्वितीयक आंकड़ों (पुस्तकें, शोधपत्र, पत्र-पत्रिकाएँ) के आधार पर यह अध्ययन करना है कि महात्मा गांधी के विचारों में स्वराज, स्वदेशी और खादी ने ग्रामीण महिलाओं के स्वावलंबन में किस प्रकार योगदान दिया।
References
ब्राउन, जे. एम. (2011). गांधीः प्रिज़नर ऑफ़ होप. येल यूनिवर्सिटी प्रेस.
देसाई, एन. (1987). विमेन इन मॉडर्न इंडिया. विकास पब्लिशिंग हाउस.
गांधी, एम. के. (1997). एन ऑटोबायोग्राफीः द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ (एम. देसाई, अनुवाद). बीकन प्रेस. (मूल कार्य 1927 में प्रकाशित)
पारेख, बी. (1997). गांधीः अ वेरी शॉर्ट इंट्रोडक्शन. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस
आंबेडकर, बी. आर. (1936). एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट. अर्नोल्ड पब्लिशर्स.
एंडरसन, बेनेडिक्ट. (1983). इमैजिन्ड कम्युनिटीजः रिफ्लेक्शंस ऑन द ओरिजिन एंड स्प्रेड ऑफ़ नेशनलिज़्म. वर्सो.
देसाई, नीरा. (1994). इंडियन विमेनः फ्रॉम पर्दा टू मॉडर्निटी. विकास पब्लिशिंग ,न्यू दिल्ली
देसाई, ए. आर. (1974). रूरल सोशियोलॉजी इन इंडिया. पॉपुलर प्रकाशन.न्यू दिल्ली
गांधी, एम. के. (1938). हिंद स्वराज. नवजीवन पब्लिशिंग हाउस.
गांधी, एम. के. (1958/1994). द कलेक्टेड वक्र्स ऑफ़ महात्मा गांधी पब्लिकेशन्स डिवीजन, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
गोविंदराजन, तारा. (2011). विमेन’स एजेंसी एंड गांधियन पॉलिटिक्सः रीइंटरप्रेटिंग खादी मूवमेंट. इंडियन जर्नल ऑफ़ जेंडर स्टडीज़, 18(2), 245दृ266
कटारिया, सुरेन्द्र, - महला, अरविन्द. (2014). भारत में महिला सशक्तिकरणः प्रयास एवं बाधाएं. मलिक एंड कंपनी.
करुपा, वी. डी. (2017). रोल ऑफ़ सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स इन विमेन एम्पावरमेंटः अ स्टडी इन शिमोगा डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कर्नाटका. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ डेवलपमेंट रिसर्च,
सिंह, राकेश प्रसाद. (1994). अनुसूचित जातियों में प्रस्थिति परिवर्तन (डॉक्टोरल शोधप्रबंध, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय).
चक्रवर्ती, बी. (2014). सोशल एंड पॉलिटिकल थॉट ऑफ महात्मा गांधी. रूटलेज.
चटर्जी, पी. (1993). द नेशन एंड इट्स फ्रैगमेंट्सः कॉलोनियल एंड पोस्टकॉलोनियल हिस्ट्रीज़. प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी प्रेस.
फोब्र्स, जी. (1996). विमेन इन मॉडर्न इंडिया. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस.
फोब्र्स, जी. (1998). विमेन इन कॉलोनियल इंडियाः एस्सेज ऑन पॉलिटिक्स, मेडिसिन, एंड हिस्टोरियोग्राफी. क्रॉनिकल बुक्स.
कुमार, आर. (2008). गांधी एंड वीमेन’स एम्पावरमेंट. मनोहर पब्लिशर्स.
नायर, जे. (1996). विमेन एंड लॉ इन कॉलोनियल इंडियाः अ सोशल हिस्ट्री. काली फॉर वीमेन.