सर्वोदय: सब के कल्याण का गांधीवादी दर्शन
DOI:
https://doi.org/10.29070/xenzxb08Keywords:
सर्वोदय, बसुधैव कुटुंबकम, unto this last, ट्रस्टीसिपAbstract
महात्मा गांधी के समय में भारत में समाज जाति,वर्ग और विषमता से ग्रस्त था। धन कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित था और गरीब और श्रमिक ऐसे वर्ग थे जो हमेशा से शोषित रहे। ऐसे में गांधी जी ने महसूस किया कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है जब तक समाज में समानता,प्रेम और सहयोग की भावना नहीं आती। यही कारण था कि गांधी जी ने यह माना कि यदि असमानता को समाप्त करना है तो सर्वोदय- यानी सभी का विकास आवश्यक था। वर्तमान में जहां वसुधैव कुटुंबकम , प्राचीन ज्ञान परंपरा जैसी विचारधारा को लागू करने पर बल दिया जा रहा है वहां गांधी जी के सर्वोदय की विचारधारा को पढ़ना और लागू करना उतना ही प्रासंगिक है जितना बसुधैव कुटुंबकम और प्राचीन ज्ञान परंपरा की संकल्पना को पुनर्जीवित रखना। यह शोध पत्र महात्मा गांधी के सर्वोदय की विचारधारा वर्तमान में कितनी प्रासंगिक है और कैसे यह विचारधारा हमारी वसुधैव कुटुम्बकम , प्राचीन ज्ञान परंपरा को जीवित रखती है और सभी के कल्याण की बात करती है , यह बताने का प्रयास किया गया है। महात्मा गांधी का जीवन केवल एक राजनीतिक आंदोलन का प्रतीक नहीं था वरन वह मानवता, सत्य और हिंसा के मूल्यों पर आधारित एक व्यापक जीवन दर्शन के प्रवर्तक थे। इसी दर्शन का सर्वश्रेष्ठ रुप सर्वोदय में परिलक्षित होता है जिसका अर्थ है सबका उदय या सबका कल्याण। सर्वोदय गांधी जी के उस आदर्श समाज की कल्पना है, जहां व्यक्ति समाज और प्रकृति तीनों के मध्य संतुलन स्थापित हो सके।
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