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“संत जगजीवनदास की दार्शनिक प्रासंगिकता: अपनी बुद्धि के कारण ही मानव विश्व की अन्य वस्तुओं को देखकर उनके स्वरूप को जानने की चेष्टा”, JASRAE, vol. 15, no. 9, pp. 521–525, Oct. 2018, Accessed: Jun. 08, 2025. [Online]. Available: https://ignited.in/index.php/jasrae/article/view/8891