स्वामी विवेकानन्द जी के शिक्षा, धर्म एवं नारी शिक्षा के संदर्भ में विचार

जीवन चरित्र का निर्माण और विश्वास की शक्ति: स्वामी विवेकानन्द जी के विचार

by Dr. Savita Gupta*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 2, Mar 2021, Pages 145 - 148 (4)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

शिक्षा व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों को विकसित करने की प्रक्रिया है। अतः शिक्षा एक गतिशील प्रवाह और अनिवार्य अंग है शिक्षा व्यक्ति के तमाम विषमताओं पर विजय हासिल करना है। शिक्षा के ही द्वारा समाज अपनी संस्कृति की रक्षा करता है इस प्रकार जीवन की उदारता उच्चता एवं उत्कृष्टता शिक्षा द्वारा ही संभव है। स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय और विश्व इतिहास के इतिहास के उन महान विभूतियों में से है जिन्होनें राष्ट्रीय जीवन को एक नई दिशा प्रदान की। भारत से हजारों मील दूर विदेश में एक उभरते हुए दीपक की भांति अपरिचितों के बीच अपनी ओजमयी वाणी में भारतीय धर्म-साधना के चिरन्तन सत्यों का उद्घोष किया। सम्पूर्ण विश्व में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने स्वामी विवेकानन्द का नाम नहीं सुना होगा। आधुनिक भारत में इनका उल्लेख युवा पुरुष के रुप में किया जाता है। इनका लक्ष्य समाज सेवा, जनशिक्षा धार्मिक पुनरुत्थान और समाज में जागरुकता लाना, मानव की सेवा आदि था। जनचिंतन से सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए स्वामी जी का चिन्तन अत्यन्त मौलिक एवं प्रेरक है। स्वामी विवेकानन्द के जाति के सम्बन्ध में विचारों, नारी उत्थान के प्रति चिन्तन, जन शिक्षण का प्रसार, वास्तविक समाजवाद की अवधारणा, सामाजिक एकता, जनजागरण की आवश्यकता तथा कर्मशीलता सम्बन्धी विचारों नें जन-मन को प्रभावित किया है और इनमें आज भी जनसाधारण को अभिप्रेरित करनें का अनुपम सामर्थ्य है। भारत के लिए स्वामी जी के विचार चिंतन और संदेश प्रत्येक भारतीय के लिए अमूल्य धरोहर है तथा उनके जीवन शैली और आदर्श प्रत्येक युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। स्वामी जी भारतीय शिक्षा और धर्म के समग्रंता के सम्बन्ध ने आज हमारे सामने विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए यह आहवान है कि - ‘‘मानव स्वभाव गौरव को कभी मत भूलो।‘‘ उनके विचारानुसार शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी देना मात्र नही है अपितु उसका लक्ष्य जीवन चरित्र और मानव का निर्माण करना होता है। चूंकि वर्तमान शिक्षा उन तत्वों से युक्त नहीं है। वे शिक्षा के वर्तमान रुप को अभावात्मक बताते थे, जिसमें विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति का ज्ञान नहीं होता।

KEYWORD

शिक्षा, धर्म, नारी शिक्षा, स्वामी विवेकानन्द, भारत