मूल्य परक शिक्षा की आवश्यकता एवं वर्तमान में उनके विभिन्न पक्षों की प्रासंगिकता

by Arti Shukla*, Dr. S. K. Mahto,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 3, Apr 2021, Pages 191 - 196 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

मूल्य व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारिण करने वाली शक्ति के रूप में जाने जाते हैं तथा इनमें समाज की सहमति व असहमति भी निहित रहती है। भारतीय संस्कृति में मानव के द्वारा अनुभूत किसी भी आवश्यकता की तुष्टि का जो भी साधन है वह साधन मूल्य है। मूल्य एक सामान्य एवं अमूर्त गुण है जो किसी व्यक्तित्व में निहित रहता है और उसके महत्व की ओर संकेत करती हैं। दूसरे शब्दों में व्यक्ति या वस्तु का वह गुण जिसके कारण उसका महत्व सम्मान था उपयोग अधिक बढ़ जाता है, वह मूल्य कहलाता है। मूल्य का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है, यथा सैद्धातन्तिक मूल्य, सामाजिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौन्दर्यात्मककलात्मक मूल्य, राजनैतिक मूल्य एवं समग्र मूल्य। मूल्यपरक शिक्षा’ की आज जितनी आवश्यक अनुभव की जा रही है उतनी पहले कभी नहीं की गई थी, हमारी प्राचीन परम्परा एवं संस्कृति से परिपोषित एवं वैयक्तिक अस्मिता एवं विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों से नियन्त्रित जीवन-मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा में शिक्षण संस्थाओं का अपना विशिष्ट योगदान रहा है।

KEYWORD

मूल्य परक शिक्षा, भारतीय संस्कृति, मूल्य, व्यक्ति, शिक्षण संस्थाएं