सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण की अवधारणा

शिक्षा में शिक्षक प्रशिक्षण एवं राष्ट्र निर्माण

by Rakhi Kumari*, Dr. Vijay Gupta,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 5, Aug 2021, Pages 153 - 158 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास का एक सशक्त माध्यम है। यह मनुष्य की पशुवत प्रवृत्तियों का नाशकर उसे मानव बनाती है। परन्तु शिक्षा के निरन्तर गिरते हुए स्तर से सभी बुद्धिजीवी, शिक्षाविद् एवम् समाजशास्त्री चिंतित हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के विकास को यदि राष्ट्र निर्माण की नींव कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं, क्योंकि शिक्षक की राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक के द्वारा ही शिक्षा के माध्यम से बालकों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करके, उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाकर तथा उन्हें समाज, राष्ट्र और विश्व के नागरिकों के रूप में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिये तैयार किया जाता है, परन्तु शिक्षा के सभी उद्देश्य और प्रयोजन महाविद्यालयों की कर्मभूमि में तभी फलीभूत हो सकते हैं जबकि योग्य, कर्मठ व निष्ठावान शिक्षक हों। सरकारी क्षेत्र से निजी क्षेत्र में बदलाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। इसलिए, शिक्षा के क्षेत्र में भी, निजी क्षेत्र अपने अभिभावकों (गुणवत्ता) के कारण फलते-फूलते दिखते हैं, जैसा कि अधिकांश अभिभावकों द्वारा माना जाता है। शिक्षा व्यक्ति के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण है। जैसे कि यह भारत में एक प्रमुख चिंता का क्षेत्र है। हालांकि वर्तमान में शिक्षा, शिक्षा में एक प्राथमिकता क्षेत्र है, यह क्षेत्र शैक्षिक अनुसंधान में उपेक्षित रह गया है। विशेष रूप से सामाजिक-आर्थिक स्थिति (एसईएस), वर्ग आकार और उपलब्धियों जैसे अन्य चर के संबंध में महाविद्यालयों इनपुट का क्षेत्र भारत में बड़े पैमाने पर शोध नहीं किया गया है।

KEYWORD

सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण, शिक्षा, मनुष्य, गुणवत्ता, राष्ट्र निर्माण