मीरा की भक्ति का स्वरूप का अध्ययन

An exploration of Mira's devotion and its impact on Indian literature and music

by Neha Rao*,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 6, Oct 2021, Pages 30 - 35 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भक्तिकाल हिंदी कविता का स्वर्णयुग माना जाता है। जिन भक्त कवियों ने इस काल को स्वर्णकाल बनाने में योगदान दिया है उनमें मीराँ का प्रमुख स्थान है। नि संदेह मीराँबाई भक्ति, संगीत व साहित्य की त्रिवेणी है। राजवंश में जन्म लेनी वाली भक्त शिरोमणी मीराँबाई ने भक्ति का जो सन्देश लोक मानस में विस्तारित किया, वह पदों व भजनों की सरिता के रूप में राष्ट्रीय व राज्य सीमाओं का अतिक्रमण कर सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय लोकजीवन में प्रभावित हो गया है। ऐसी स्थिति में मध्यकाल के सामन्तवादी माहौल में अवतरित भक्त शिरोमणी मीराबाई के जीवनवृत्त एवं भक्ति पर ऐतिहासिक दृष्टि से पुनर्विचार समसामयिक दृष्टिकोण से आवश्यक व युग की महती आवश्यकता है। मीरों की भक्ति भावना का समकालीन सम्प्रदायों से तुलनात्मक विवेचन करते हुये डॉ. कल्याण सिंह शेखावत अपनी रचना “मीराँबाई का जीवन वृत एवं काव्य” में लिखते है कि मीराँ न तो वल्लभ सम्प्रदाय से प्रभावित थी और न निम्बार्क, सखी, हरिदासी और राधास्वामी सम्प्रदाय से। यदि मीराँ की भक्ति पर कोई प्रभाव था, तो श्रीमद् भागवत् का था और यदि कोई-साम्प्रदायिक प्रभाव खोजा जा सकता है, तो वह था दक्षिण के “पांच रात्र तन्त्र” तथा बंगाल के चैतन्य सम्प्रदाय का। यह भी मीराँ की भक्ति और साधना की नवीन देन ही कही जायेगी कि उसने अपने युग के उत्तर भारत में प्रचलित प्रभावपूर्ण भक्ति और साधना को छोड़कर, दक्षिण और बंगाल में प्रचलित भक्ति और साधना को ग्रहण किया।

KEYWORD

मीरा की भक्ति, स्वरूप, भक्तिकाल हिंदी कविता, मीराँबाई, जीवनवृत्त