वर्तमानयुग में मूल्य परक शिक्षा की आवश्यकता एवं मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया

The Necessity of Value-Based Education in the Modern Era

by आरती शुक्ला*, डॉ. एस. के. महतो,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 6, Oct 2021, Pages 327 - 332 (6)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

मूल्य व्यक्ति के व्यवहार को निर्धारिण करने वाली शक्ति के रूप में जानी जाती हैं तथा इनमें समाज की सहमति व असहमति भी निहित रहती है। भारतीय संस्कृति में मानव के द्वारा अनुभूत किसी भी आवश्यकता की तुष्टि का जो भी साधन है वह साधन मूल्य है। मूल्य एक सामान्य एवं अमूर्त गुण है जो किसी व्यक्तित्व में निहित रहता है और उसके व्यक्तित्व की विशिष्टता तथा महत्व की ओर संकेत करती हैं। दूसरे शब्दों में व्यक्ति या वस्तु का वह गुण जिसके कारण उसका महत्व सामान्य की अपेक्षा अधिक हो जाता है तथा उनका उपयोग प्रचलन में अधिक बढ़ जाता है, वह मूल्य कहलाता है। मूल्य का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है, यथा सैद्धातन्तिक मूल्य, सामाजिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौन्दर्यात्मककलात्मक मूल्य, राजनैतिक मूल्य एवं समग्र मूल्य। शास्त्रों में मूल्य के विभिन्न पक्षों का भी वर्णन किया गया है यथा, धार्मिक पक्ष, वैज्ञानिक पक्ष, सामाजिक पक्ष, नैतिक पक्ष, व्यक्तित्व के निर्णायक पक्ष। मूल्यपरक शिक्षा’ की आज जितनी आवश्यक अनुभव की जा रही है उतनी पहले कभी नहीं की गई थी, हमारी प्राचीन परम्परा एवं संस्कृति से परिपोषित एवं वैयक्तिक अस्मिता एवं विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों से नियन्त्रित जीवन-मूल्यो की पुनः प्रतिष्ठा में शिक्षण संस्थाओं का अपना विशिष्ट योगदान रहा है।अतः जीवन-मूल्यों की शिक्षा की आवश्यकता अपरिहार्य है। इस दृष्टि से प्रस्तुत आलेख की उपयोगिता, उपादेयता एवं प्रासंगिकता स्वतः सिद्ध है।‘‘

KEYWORD

मूल्य परक शिक्षा, मूल्य निर्धारण, भारतीय संस्कृति, व्यक्तित्व, महत्व, सामाजिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, सौन्दर्यात्मककलात्मक मूल्य, राजनैतिक मूल्य, समग्र मूल्य