कबीर और भक्ति की वर्तमान अवधारणा: एक पुनर्मूल्यांकन

कबीरदास: भक्ति आंदोलन और मानवतावाद का अध्ययन

by Lalithamma M.*, Dr. Okendra .,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 18, Issue No. 7, Dec 2021, Pages 44 - 50 (7)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

जिस अवधि में कबीरदास का जन्म हुआ, उसे भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत के रूप में जाना जाता है। भक्ति के सिद्धांतों का प्रचार रामानंद ने किया था लेकिन इसे कबीरदास और उनके अनुयायियों ने लोकप्रिय बनाया। कबीरदास वैष्णव थे। वह निर्गुण भक्ति से बहुत प्रभावित थे और वे सांसारिक मामलों से परे सत्य के लिए उच्च विश्वास और सम्मान रखते थे। प्रत्येक धर्म की मूल शिक्षा अपने साथियों की सेवा करके परमात्मा से जुड़ना है। सच्चा, निस्वार्थ, सहनशील और हृदय से सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति ही अन्य लोगों के कल्याण के बारे में सोच सकता है और जरूरतमंदों की सेवा कर सकता है। ये मानवतावाद की बुनियादी विशेषताएं हैं। एक सच्चा भक्त इस ब्रह्मांड के कण-कण में अपने ईश्वर को देखता है। वह हर जगह आराध्य भगवान की उपस्थिति को महसूस करता है। समय बीतने के साथ भक्त के भीतर भक्ति की शक्ति उसे दुनिया को पूरी तरह से नई रोशनी में देखने में सक्षम बनाती है। इस तरह वह परमात्मा से मिल जाता है। कबीरदास भक्ति धर्म के हिमायती थे। उनका मानना था कि अहंकार और अभिमान ईश्वरीय आत्मा के साथ एक होने के मार्ग में बाधक हैं। निस्संदेह उनके समय के रूढ़िवादी समाज ने उनके लिए बाधाएँ खड़ी कीं। लेकिन कबीरदास की शिक्षाओं में सार्वभौमिक मानवतावादी अपील ने ऐसी बाधाओं को दूर कर दिया और उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की खाई को पाट दिया। उनके उपदेशों और शिक्षाओं ने उत्तर भारत में सद्भाव की हवा लाई, जब समुदायों ने सामाजिक लेन-देन के संबंध में कड़वाहट का अनुभव किया। कबीरदास एक ऐसे भक्त थे जिन्होंने राम को अपना मित्र मानकर भक्ति और धर्म निरपेक्ष धर्म का संदेश समाज में फैलाया। वह भक्ति के धर्म के माध्यम से समाज को सुधारना चाहते थे जो विभिन्न धर्मों के सभी लोगों के लिए स्वीकार्य हो सकता है। इस अध्ययन में कबीर की भक्ति को दर्शाया है।

KEYWORD

कबीरदास, भक्ति, भक्ति आंदोलन, वैष्णव, मानवतावाद