भारतीय समाज के सन्दर्भ में सामाजिक न्याय की प्रासंगिकता
व्यापकता और धार्मिकता के सन्दर्भ में
by डॉ. सत्येन्द्र सिंह*, डॉ. विपिन कुमार,
- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540
Volume 19, Issue No. 1, Jan 2022, Pages 384 - 387 (4)
Published by: Ignited Minds Journals
ABSTRACT
सामाजिक न्याय विश्व की श्रेष्ठ अवधारणा है जो बहुत व्यापक और बहुआयामी है। यह एक आदर्श स्थिति है जिसकी स्थापना, अनुभूति, निरन्तरता तथा व्यवहार आंशिक रूप ही सम्भव हो पायेंगे। यह व्यक्ति, परिवार समुदसक राष्टं और राज्य से सम्बन्धित है। जिस तरह पमाजिक न्याय की प्म्भावना हर क्षण हर जगह हो सकती है उसी तरह इसका निषेध और उल्लंघन हर क्षण हर जगह हो सकता है। इसका सीधा सम्बन्ध देश-काल की परिस्थिति मानव समाज, मानवीय मूल्य, प्रकार का स्वरूप और उनकी इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति से है। सामाजिक न्याय का सकारात्मक अथवा नकारात्मक बभाव विशेषकर निर्धन, अपेक्षित, पीड़ित, दलित, शोषित, असहाय, विकलांग एवं कमजोर वर्ग पर पड़ता है। अतः सामाजिक न्याय का क्षेत्र व्यापक और बहुआयामी है इसलिये बाथमिकताओं का चयन करना होगा।
KEYWORD
सामाजिक न्याय, भारतीय समाज, व्यापक, बहुआयामी, स्थापना, निरन्तरता, व्यक्ति, परिवार समुदाय, राष्ट्र, राज्य