भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली का बदलता स्वरूप: एक समाजशास्त्रीय चिन्तन

तंत्रिक परिवर्तन और सामूहिक सामरिक्षा: एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

by डॉ. सत्येन्द्र सिंह*, डॉ. विपिन कुमार,

- Published in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education, E-ISSN: 2230-7540

Volume 19, Issue No. 4, Jul 2022, Pages 259 - 263 (5)

Published by: Ignited Minds Journals


ABSTRACT

भारत में लोकतंत्र स्थापित करने का एक ही मार्ग है और वह है संविधान के बनाए रास्ते पर चलते हुए हर व्यक्ति, समूह एवं संगठन उसे अपना व्यक्तिगत सामूहिक व पंगठनिक घोषण-पत्र स्वीकार करें। संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार करके ही नागरिक समाज का निर्माण किया जा सकता है। यदि कुछ व्यक्ति समूह या समुदाय अपने अधिकारों के प्रति सचेत है उन्हें प्रासत करने में सक्षम है और बहुसख्ंयक अपनी पिछड़ी पमाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक पृष्ठभूमि के कारण अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है उन्हें प्रासत करने का प्रयास नहीं करते हैं तो इन परिस्थितियों में नागरिक समाज का निर्माण नहीं हो सकता। जब मनुष्य स्वयं अपने अच्छे-बुरे का निर्णय कर प्के तथा अच्छे उदकृदेपय को प्रासत करने में सक्षम हो, तो उसका नैतिक विकास हो जाता है। यही उसका सशक्तिकरण है, प्रबुद्धिकरण है। यही भारत में प्रबुद्ध लोकतंत्र के निर्माण की प्रक्रिया का पहला चरण है

KEYWORD

भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली, सामूहिक घोषणा-पत्र, नागरिक समाज, अधिकार, निर्माण